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________________ किन्तु इतना सत्य है कि ये सभी लब्धियाँ साधक को संयम और तपः साधना से प्राप्त होती हैं। लब्धियों की शक्तिरूप अवस्थिति साधक योगी के तैजस् शरीर में होती है और इनकी अभिव्यक्ति बाहर होती है। वह अभिव्यक्ति ही अन्य लोगों को दिखाई देती है। जब भी योगी इन लब्धियों का प्रयोग करता है तभी लोगों को उन लब्धियों और योगी की लब्धिसम्पन्नता का ज्ञान हो पाता है। लेकिन लब्धियों के प्रयोग के बारे में साधक को जैन शास्त्रों का स्पष्ट आदेश है कि वह इन लब्धियों का प्रयोग न करे। यदि कभी विवशतावश, अन्य प्राणियों के कष्ट निवारण हेतु अथवा संघ-रक्षा के लिए लब्धि का प्रयोग करना ही पड़े तो लब्धि-प्रयोग के बाद प्रायश्चित ग्रहण करना आवश्यक है, अन्यथा साधक विराधक बन जाता है। वस्तुस्थिति यह है कि यद्यपि साधक मोक्ष साधना के लिए संयम-तप की आराधना करता है और ऐसा ही आदेश उसे शास्त्रों में दिया गया है कि तपःकर्म की साधना केवल कर्मनिर्जरा के लिए करनी चाहिये, किसी भी लौकिक कामना से नहीं; फिर भी तप:साधना के लौकिक फलस्वरूप साधक को ये लब्धियाँ प्राप्त हो ही जाती हैं। जैन दर्शन के अनुसार साधक को लब्धि प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं, वे तो प्रासंगिक फल के रूप में स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। किन्तु इन आनुषंगिक फलों-लब्धियों का व्यामोह साधक की मोक्ष साधना में बाधक ही बनता है। अतः साधक को इस व्यामोह से दूर रहकर कर्मनिर्जरा एवं मोक्ष साधना में ही लीन रहना चाहिये। यही मत महर्षि पतंजलि का भी है, वे भी लब्धियों को मोक्ष साधना में व्यवधान मानते हैं। वस्तुतः लब्धियाँ योग साधना का बाह्य अंग हैं और जैन योग के अनुसार समस्त बाह्य भाव मोक्ष के-आत्म-शुद्धि के बाधक हैं, अतः लब्धियाँ भी मोक्ष साधना में बाधक ही हैं, साधक नहीं। इसलिये न तो इनकी प्राप्ति के लिए साधना करनी चाहिये और न ही इनका प्रयोग। ००० 1. दशवैकालिक सूत्र 9/4 ' 2 योगशतक, गाथा 83-85 3. पातंजल योगसूत्र 3/38-ते समाधावुपसर्गाः व्युत्थानेसिद्धयः। * योगजन्य लब्धियाँ * 101 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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