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________________ (4) जल्लोसहि-योगी के कान, मुख, नाक आदि के मैल का औषधि रूप में परिणमित हो जाना। (5) सव्वोसहि-योगी के मल-मूत्र, नख-केश आदि सभी अंगों में सुगन्धि और रोग उपशमन की शक्ति। __(6) संभिन्नश्रोत-सम्पूर्ण शरीर से सुनने की क्षमता तथा सभी इन्द्रियों द्वारा एक-दूसरी इन्द्रिय का कार्य करने का सामर्थ्य। __(7) अवधिलब्धि-अवधिज्ञान-रूपी (स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण वाले) पदार्थों के भूत-भविष्य और वर्तमान तीनों कालों की पर्यायों को जानने की क्षमता। (8) ऋजुमतिलब्धि-दूसरे के मनोगत विचारों को सामान्य रूप से जानने की योग्यता। यह लब्धि मनःपर्यवज्ञानी को प्राप्त होती है। __(9) विपुलमतिलब्धि-यह लब्धि भी मनःपर्यवज्ञानी को प्राप्त होती है। इस लब्धि द्वारा योगी साधक दूसरों के मनोगत सूक्ष्म भावों को भी जान लेता है। (10) चारणलब्धि-इस लब्धि के दो भेद हैं-(1) जंघा-चारण और (2) विद्याचारण। इस लब्धि वाले योगी को आकाश में गमनागमन करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। (11) आशीविषलब्धि-इस लब्धिधारी योगी को शाप देने तथा अनुग्रह करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। (12) केवललब्धि-यह सर्वोत्कृष्ट लब्धि है। यह योगी को चार घातिया कर्मों (दर्शनावरण, ज्ञानावरण, मोहनीय और अन्तराय) के सर्वथा क्षय से प्राप्त होती है। इस लब्धि का धारक मनुष्य सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग हो जाता है। वह तीनों लोकों और तीनों कालों की सब बातें जानता है। लोकालोक के सम्पूर्ण द्रव्य-पदार्थ-तत्त्व उसको हस्तामलकवत् हो जाते हैं। वह अनन्तवीर्य का धारक हो जाता है और अनन्त सुख में रमण करता है। (13) गणधरलब्धि-इस लब्धि के धारक योगी को तीर्थंकर के प्रधान शिष्य गणधर पद की प्राप्ति होती है। (14) पूर्वधरलब्धि-इस लब्धि का धारक साधक चौदह पूर्वो का ज्ञान अन्तर्मुहूर्त (48 मिनट से कम समय) में प्राप्त कर लेता है। (15) अर्हत्लब्धि-इस लब्धि द्वारा साधक को अर्हत् पद की प्राप्ति होती है। *98 * अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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