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वैदिक योग में लब्धियां
वैदिक धर्म परम्परा में आध्यात्मिक ज्ञान और अध्यात्म साधना में उपनिषदों का महत्त्व सर्वोपारे है। श्वेताश्वतर उपनिषद में उल्लेख है कि लब्धियों से नीरोगता, जरा-मरण का अभाव, शरीर का हल्कापन, आरोग्य, विषय-निवृत्ति, शरीर-कान्ति, स्वर-माधुर्य, मल-मूत्र की अल्पता आदि योग-प्रवृत्ति से उपलब्ध होती है।'
श्रीमद्भगवद् गीता में तो गीताकार ने एक पूरे अध्याय में ही विभूतियों का वर्णन किया है।
हठयोग के ग्रन्थों में भी अनेक प्रकार की सिद्धियों का वर्णन है।
पौराणिक साहित्य में सिद्धियों के 18 प्रकार बताये हैं। इनमें से (1) अणिमा, (2) महिमा, (3) लघिमा-ये तीन शारीरिक सिद्धियाँ हैं। इन्द्रिय सिद्धि को 'प्राप्ति' कहा गया है। 'प्राकाम्य' नामक सिद्धि से साधक श्रुत और दृष्ट पदार्थों को इच्छानुसार अनुभव कर लेता है। 'ईषिता' सिद्धि से साधक माया के कार्यों को प्रेरित करता है। 'वशिता' सिद्धि का धारक साधक प्राप्त भोगों में आसक्त नहीं होता। 'कामावसायिता' सिद्धि द्वारा साधक अपनी इच्छानुसार सुख की उपलब्धि करने में सक्षम हो जाता है।
इनके अतिरिक्त (1) त्रिकालज्ञत्व, (2) अद्वन्द्वत्व (शीत-उष्ण, सुख-दु:ख आदि द्वन्द्वों से पराजित न होना), (3) परचित्त अभिज्ञान, (4) प्रतिष्टम्भ (अग्नि, सूर्य, जल, विष आदि की शक्ति को स्तम्भित कर देना, (5) अपराभव-ये पाँच सिद्धियाँ और हैं। __ये सभी सिद्धियाँ योगियों को प्राप्त होती हैं। योगदर्शनसम्मत लब्धियां
___ योगदर्शन में जो यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि योग के आठ अंग बताये गये हैं, उनके बारे में कहा गया है कि इनकी साधना से आभ्यन्तर और बाह्य दोनों प्रकार की सिद्धियाँ (लब्धियाँ) योगी को प्राप्त होती हैं।
1. श्वेताश्वतर उपनिषद् 2/12-13 2. श्रीमद्भगवद्गीता, दशवाँ अध्याय 3. श्रीमद्भागवत महापुराण स्कन्ध 11, अ. 15, श्लोक 3-4 4. वही
" " श्लोक 6-7 5. वही
श्लोक 8
*94 * अध्यात्म योग साधना