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योग के अनुष्ठान
योग-साधना की सिद्धि के लिए अनुष्ठान (क्रियाएँ) आवश्यक हैं, क्योंकि क्रिया के बिना सिद्धि की प्राप्ति सम्भव ही नहीं है। अनुष्ठान के पाँच' प्रकार हैं-(1) विषानुष्ठान, (2) गरानुष्ठान, (3) अननुष्ठान, (4) तद्धेतु अनुष्ठान, (5) अमृतानुष्ठान।
___ इनमें से प्रथम तीन अनुष्ठान राग, मोह आदि भावों से युक्त होने के कारण लौकिक हैं, अतः मोक्षमार्ग की अपेक्षा असदनुष्ठान हैं। अन्तिम दो अनुष्ठानों में रागादि भावों का अल्प-अंश होता है तथा इन अनुष्ठानों में साधक की इच्छा संसार-सुखों की प्राप्ति की नहीं होती, अतः इन्हें सदनुष्ठान कहा जाता है।
(1) विष-अनुष्ठान-इस अनुष्ठान को करते समय साधक की इच्छा सांसारिक सुखों को प्राप्त करने की होती है। यश, कीर्ति, इन्द्रिय-सुख, धन आदि की प्राप्ति उसका लक्ष्य होता है। राग आदि भावों की अधिकता के कारण यह अनुष्ठान विष-अनुष्ठान है; क्योंकि सांसारिक सुखों की इच्छा मोक्ष-प्राप्ति में विषतुल्य मानी गई है। ___ (2) गरानुष्ठान–'गर' शनैः-शनैः मारने वाला विष होता है। जब साधक के हृदय में स्वर्ग-सुखों की अभिलाषा रहती है, तो उसके द्वारा किया जाने वाला अनुष्ठान गरानुष्ठान कहलाता है; क्योंकि स्वर्ग-सुख़ों की इच्छा भी स्वर्ग-सुख भोगने के बाद निम्न गतियों का कारण बनती है।
(3) अननुष्ठान-जो धार्मिक क्रियाएँ अथवा अनुष्ठान बिना उपयोग के, विवेकहीन होकर गतानुगतिक रूप में, लोक परम्परा का पालन करते हुए, लोगों की देखा-देखी की जाती हैं, वे अननुष्ठान हैं। दूसरे शब्दों में इन्हें भावशून्य द्रव्य अनुष्ठान भी कहा जा सकता है
__ (4) तद्धेतु अनुष्ठान-मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा से जो शुभ क्रियाएँ-धार्मिक व्रत-नियम आदि की जाती हैं, वे तद्धेतु अनुष्ठान कहलाती हैं। यद्यपि राग का अंश यहाँ भी विद्यमान रहता है; किन्तु प्रशस्त राग होने से वह परम्परा से मोक्ष का कारण है; इसलिये यह अनुष्ठान सदनुष्ठान है।
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विषं गरोऽननुष्ठानं तद्धेतुरमृतं परम्। गुर्वादिपूजानुष्ठानमपेक्षादिविधानतः।।
-योगबिन्दु 155
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'गध्यात्म योग साधना *