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________________ इसमें सेवा के दो अवान्तर भेद हैं-(1) सामान्य सेवा और (2) उत्तम सेवा। सामान्य सेवा का दूसरा नाम 'वज्रचतुष्ट्य' दिया गया है और उत्तम सेवा को 'ज्ञान-सुधा' कहा गया है। वज्र चतुष्ट्य किसी देवता के साक्षात्कार की प्रक्रिया है। इसके चार सोपान हैं-(1) शून्यता प्रत्यय, (2) शून्यता का बीजमन्त्र के रूप से परिणाम, (3) बीजमन्त्र का देवता के आकार का बन जाना और (4) देवता का विग्रह रूप में प्रकट होना। 'उत्तम सेवा' में सिद्धि प्राप्त करने के लिए षडंगयोग का साधन किया जाता है। इन छह अंगों के नाम हैं-(1) प्रत्याहार, (2) ध्यान, (3) प्राणायाम, (4) धारणा, (5) अनुस्मृति और (6) समाधि। स्पष्ट ही यह अष्टांग योग में उल्लिखित शब्द हैं, सिर्फ अनुस्मृति ही नया है तथा यम, नियम, आसन-अष्टांग योग के ये तीन अंग छोड़ दिये गये हैं। .. प्रत्याहार द्वारा इन्द्रियों का निग्रह किया जाता है। - रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान पर चित्त को एकाग्र करना ध्यान है। प्राणायाम का स्वरूप बौद्ध योग में भी लगभग वैसा ही है जैसा अष्टांग योग में बताया गया है-अर्थात् प्राणवायु का निरोध एवं नियमन। धारणा में साधक अपने इष्ट मन्त्र का हृदय कमल पर जप करता है। धारणा के स्थिर होने पर साधक को निरभ्र आकाश के सदृश स्थिर प्रकाश का चिह्न दिखाई देता है। __अनुस्मृति उस पदार्थ के अनवच्छिन्न ध्यान को कहा जाता है, जिसके निमित्त योग साधना का प्रारम्भ किया गया है। इसका चिरकाल तक अभ्यास होने के बाद प्रतिभास (revelation) होने लगता है अर्थात् सृष्टि में स्थित समस्त पदार्थ एक पिंड के रूप में दिखाई देने लगते हैं। उस पिंड के समस्त बाह्य प्रपंचों पर ध्यान करने से समाधि रूप अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति शीघ्र हो जाती है। ___ सबसे विचित्र बात यह है कि साधक के लिए योग साधना करते हुए भी किसी प्रकार का खान-पान सम्बन्धी बन्धन नहीं बताया गया है। योग-वियोग-अयोग योग और योगमार्ग का एक अन्य अपेक्षा से भी वर्गीकरण किया गया है, वह है-योग-वियोग-अयोग। * योग के विविध रूप और साधना पद्धति * 51*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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