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ज्योतिष्मान् स्वरूप को जानकर अनायास ही चिर सुख शान्तिमय ब्रह्मानन्द सुखरूप मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
एक शब्द में शुकदेव द्वारा उपदिष्ट विहंगम मार्ग ज्ञानमार्ग है।
वामदेव महान योगी थे। अतः उन्होंने योगमार्ग का उपदेश दिया। यम-नियम-प्राणायाम आदि अष्टांग योगमार्ग बताया। उनके मार्ग के अनुसार निर्विकल्प समाधि दशा प्राप्त करके साधक मुक्त होता है।
वेदान्त विज्ञों के मतानुसार योगमार्ग की अपेक्षा ज्ञानमार्ग श्रेष्ठ है; क्योंकि इसमें पतन होने की सम्भावना नहीं है; जबकि योगी के पतित होने की सम्भावनाएँ हैं। दूसरी विशेषता यह है कि ज्ञानमार्ग द्वारा मुक्ति शीघ्र प्राप्त हो सकती है; जबकि योगमार्ग द्वारा अनेक जन्म भी लग सकते हैं। तीसरी विशेषता यह है कि ज्ञानमार्ग सरल है और योगमार्ग कठिन; क्योंकि यौगिक प्रक्रियाएँ काफी पेचीदी हैं।
इन सब कारणों से योगमार्ग की अपेक्षा ज्ञानमार्ग श्रेष्ठ माना जाता है। बौद्ध-योग
योग की परम्परा और आकर्षण से बौद्धधर्म-दर्शन भी अछूता नहीं रहा । इस दर्शन के भी अनेकों ग्रन्थों में योग सम्बन्धी वर्णन मिलता है।
स्वयं तथागत बुद्ध ने भी ध्यान किया था। वे ज्ञान प्राप्ति के लिए वैदिक संन्यासियों के आश्रम में रहे और उन्होंने तीर्थंकर पार्श्व की परम्परा का अनुसरण करते हुए ध्यान साधना की । ध्यानयोग द्वारा ही उन्हें बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
बौद्धग्रन्थ 'ब्रह्मजाल सुत्त' तथा 'आटानटीय सुत्त' में भी इस विषय का कुछ वर्णन है। इनके अतिरिक्त 'मञ्जुश्री मूलकल्प', 'गुह्य समाजतन्त्र', ‘साधनमाला', ‘श्रीचक्रसंवर', 'सद्धर्म पुण्डरीक', 'सुखावतीव्यूहसूत्र', 'शमथयान' अर्थात् 'समाधि' आदि अनेक ग्रन्थों में योग और यौगिक क्रियाओं का वर्णन हुआ है। इन ग्रन्थों में 'गुह्यसमाज' यौगिक वर्णन की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ के अठारहवें अध्याय में बौद्धधर्म में प्रचलित योग साधनाओं तथा उनके उद्देश्य और प्रयोजन का वास्तविक परिचय दिया गया है। साथ ही इसी अध्याय में बौद्ध तन्त्र के पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या भी की गई है, जो बौद्धतन्त्र में सर्वाधिक प्रचलित हैं।
'उपाय' शब्द की व्याख्या करते हुए उसके चार भेद बताये गये हैं(1) सेवा, (2) उपसाधन, (3) साधन और (4) महासाधन।
*50 अध्यात्म योग साधना