SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर-माला अथवा नवकरवाली ( माला) दोनों से किया जा सकता है। माला तुलसी, रुद्राक्ष, सूत अथवा मणियों की हो सकती है। कर माला जप के भी ह्रीं आवर्त, ॐ आवर्त आदि अनेक प्रकार हैं । (15) ध्यान-यह मन्त्र योग का पन्द्रहवाँ अंग है। इसमें साधक अपने इष्टदेव का ध्यान करता है। देव का रूप उसके दृष्टि पटल पर प्रत्यक्ष हो जाता है। मन को एकाग्र करने का एकमात्र उपाय ध्यान ही है। ध्यान ही मोक्ष-कर्मबन्धन से मुक्ति का कारण है। ( 16 ) समाधि - यह मन्त्र योग का सोलहवाँ तथा अन्तिम अंग है। जब साधक को अपने मन, जप मन्त्र तथा इष्टदेव का स्वतन्त्र बोध नहीं रहता अर्थात् मन पूर्ण रूप से जप तथा इष्टदेव में लय हो जाता है, ध्याता, ध्येय और ध्यान एक रूप हो जाता है, इस अवस्था का नाम समाधि है। समाधि मन्त्र योग की उच्चतम स्थिति है। समाधि प्राप्त मन्त्रयोगी साधक कृतकृत्य हो जाता है। इस प्रकार मन्त्रयोग के इन सोलह अंगों की पूर्णता से साधक मुक्ति प्राप्त कर लेता है। ध्यानयोग योगमार्ग में ध्यान का महत्व सर्वविदित है। ऐसा कोई भी योग का मार्ग नहीं जिसमें ध्यान की चर्चा और वह भी विशेष रूप से न हो। लेकिन ध्यानयोग में सिर्फ ध्यान का ही वर्णन हुआ है और इसी से मुक्ति मानी गई है। ध्यानयोग के अनुसार ध्यान के दो प्रकार हैं- ( 1 ) भेद ध्यान और (2) अभेद ध्यान । * भेद ध्यान के उत्तरभेद अनेक हैं। (1) इष्टदेव का ध्यान - इस प्रकार के ध्यान में साधक अपने माने हुए इष्टदेव अथवा गुरु की मुद्रा का ध्यान करता है। (2) स्थूल ध्यान - इस ध्यान में भी साधक अपने इष्ट के स्थूल रूप का ध्यान करता है। (3) ज्योतिर्ध्यान - भृकुटि के मध्य में और मन के ऊर्ध्व भाग में (अर्थात् सोमचक्र में) जो ज्योति विराजमान है उस ज्योति अथवा तेज का ध्यान करना। इस ध्यान से योगसिद्धि और आत्म- प्रत्यक्षता की शक्ति प्राप्त होती है। * योग के विविध रूप और साधना पद्धति 47
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy