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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : ७५ इस प्रकार आत्मा के इस विकास क्रम से एक बात स्पष्ट है कि जैनधर्म में कोई अनादि सिद्ध परमात्मा नहीं माना गया है। प्रत्येक जीव इन गुणस्थानों पर ऊपर चढ़ता हुआ अन्ततोगत्वा परमात्मा बन सकता है। पहले तीन गुणस्थानों में बहिरात्मा, चौथे गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक अन्तरात्मा और तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानों में परमात्मा की स्थिति बतायी गई है। इन चौदह गुणस्थानों में पहला, चौथा, पाँचवाँ, छठा और तेरहवाँ गुणस्थान शाश्वत है अर्थात् लोक में सदा रहते हैं। चौथे गुणस्थान से लेकर आठवें गुणस्थान वाले जीवों में तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है। दसवें गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थानवर्ती जीवों में चौदह प्रकार के परीषहों का होना सम्भव माना गया है। यथा - क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, प्रज्ञा, अज्ञान, अलाभ, शय्या, वध, रोग, तृण स्पर्श और मल । पहले गुणस्थान वाले जीव अनन्तकाल तक संसार का परिभ्रमण करते हैं जबकि दूसरे का कालमान छह आवलिका सात समय, चौथे का तैंतीस सागर से कुछ अधिक, पाँचवें, छठे और तेरहवें का कुछ कम करोड़ पूर्व और चौदहवें का पाँच ह्रस्वाक्षर - अ, इ, उ, ऋ, लृ-उच्चारण मात्र तथा शेष का अन्तर्मुहूर्त्त माना गया है। ग्यारहवें से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक जीवों में यथाख्यात चारित्र होता है । बारहवें से लेकर चौदहवें गुणस्थानवर्ती जीव अप्रतिपाती माने गये हैं । ( आधार: समवायांग १४/५ ) प्रश्नावली १. गुणस्थान से क्या तात्पर्य है? इसके कितने प्रकार हैं? २. गुणस्थानों के निर्माण का आधार क्या है ? ३. गुणस्थानों के कालमान को बताइए । ४. मार्गणास्थान और गुणस्थान में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए । ५. पहले गुणस्थान और तीसरे गुणस्थान तथा आठवें व नवें गुणस्थानों के स्वरूप को समझाते हुए इनके अन्तर को बताइए | ६. पाँचवें और बारहवें गुणस्थानों की जानकारी दीजिए ।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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