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आशीर्वचन
जिज्ञासु सज्जनों को जैनदर्शन का ज्ञान कराने के लिए सर्वप्रथम 'पच्चीस बोल' सिखाने की परम्परा रही है। यह आगमज्ञान के रहस्यों को समझने की सरल कुंजी है। यह तत्त्व-मंदिर में प्रवेश करने का प्रथम द्वार है। इसके छोटे-छोटे बोल, सूत्र या प्वाइंट रूप में कण्ठस्थ करने में भी आसान हैं और इन बोलों में जैन धर्म-दर्शन के आवश्यक . तथा महत्त्वपूर्ण सभी सूत्र आ गए हैं। ..
कई वर्षों से यह आग्रह था कि इन पच्चीस बोलों को समझाने के लिए कोई सरल विवेचन होना चाहिये। पुराने लोग श्रद्धा-प्रधान थे। वे तर्क-वितर्क नहीं करते थे। आजकल के युवक बुद्धि-प्रधान हैं। हर एक विषय को तर्क से तथा विज्ञान के आधार पर समझने की चेष्टा करते हैं। निःसन्देह जैनदर्शन एक वैज्ञानिक दर्शन है, परन्तु हमारी समझाने की शैली आज भी वही परम्परागत है जिस कारण आज का बुद्धिवादी तर्क-प्रधान युवक उसे समझने में दिलचस्पी कम लेता है। यदि इस दर्शन के मूल सिद्धान्तों को सामान्य विज्ञान की प्रचलित भाषा में समझाया जाये तो यह शीघ्र ग्राह्य हो जाता है और लोगों को आश्चर्य भी होता है कि हजारों वर्ष पहले भी जैनदर्शन में उन तत्त्वों का विवेचन है जिनके विषय में आज के वैज्ञानिक प्रयोगशाला और परीक्षणशालाओं में बैठकर यन्त्रों द्वारा अनुसंधान कर रहे हैं।
मैंने श्री वरुण मुनि को प्रेरणा दी कि वे इस विषय की नई पुस्तकें पढ़कर पच्चीस बोल का सरल और सारयुक्त विवेचन लिखें । मुझे प्रसन्नता है कि उन्होंने अध्ययन करके इस विषय को सुन्दरता व रोचकता के साथ प्रस्तुत किया है। मैं शुभ कामना करता हूँ कि वे इसी प्रकार अपने अध्ययन में आगे बढ़ते हुए जिनशासन की सेवा करते रहें।
मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक तत्व-जिज्ञासुओं की जिज्ञासाओं का सटीक समाधान करेगी। इसी में इस पुस्तक की उपयोगिता और वरुण मुनि के श्रम की सफलता छिपी है।
-प्रवर्तक अमर मुनि