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________________ * ५६ * नवाँ बोल : योग पन्द्रह इन्द्रियजन्य मतिज्ञान और मन से होने वाला ज्ञान मनोजन्य मतिज्ञान है। सामान्यतः मतिज्ञान एक है पर विषयभेद की दृष्टि से इसके पाँच भेद हैं (१) मति, (२) स्मृति, (३) संज्ञा, (४) चिन्ता, (५) अभिनिबोध (अनुमान)। मतिज्ञान के विकास-क्रम या अवस्था-विशेष के आधार पर इसके चार . भेद हैं (१) अवग्रह, (२) ईहा, (३) अवाय, (४) धारणा। इनमें अवग्रह प्राथमिक ज्ञान है, अवाय इस ज्ञान की निश्चयान्मुख स्थिति है, ईहा विचारणा की स्थिति है और धारणा इन्द्रिय ज्ञान की स्थितिशीलता है। इस प्रकार एक ही ज्ञान की धारा क्रम से विकसित होती हुई अनेक नामों से अभिहित है। ज्ञान का दूसरा प्रकार है श्रुतज्ञान। मतिज्ञान के बाद ही जीव में श्रुत की स्थिति आती है। श्रुत का अर्थ है सुना हुआ। मतिज्ञान में शब्दादि का ज्ञान होता है किन्तु इसके बाद चिन्तन, मनन द्वारा परिपक्व जो ज्ञान होता है वह श्रुतज्ञान है। जैसे जल शब्द का सुनना या देखना-जानना मतिज्ञान है और इस जल शब्द को सुनने के उपरान्त इसका अर्थ-बोध होना और उस पर विचार करना जल सम्बन्धी श्रृतज्ञान है। मतिज्ञान और श्रृतज्ञान में प्रगाढ़ सम्बन्ध है। इनका परस्पर सम्बन्ध कारण और कार्य का है। मतिज्ञान कारण है और श्रुतज्ञान कार्य है। चूँकि मतिज्ञान से श्रुतज्ञान होता है अतः मतिज्ञान श्रुतज्ञान का कारण है। पर यह कारण बाह्य कारण है, आन्तरिक कारण तो श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम है क्योंकि किसी विषय का मतिज्ञान हो जाने पर भी यदि उक्त क्षयोपशम न हुआ हो तो उस विषय का श्रुतज्ञान नहीं हो सकता। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में एक अन्तर यह भी है कि मतिज्ञान विद्यमान वस्तु में प्रवृत्त होता है
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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