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* २० * तीसरा बोल : काय छह
पृथ्वी आदि में भी जन्म, वर्द्धन व मरण होता है। जिस प्रकार अन्य जीव उत्पन्न होते हैं, बढ़ते हैं, मरते हैं उसी प्रकार पृथ्वी भी उत्पन्न होती है, बढ़ती और मरती है। आधुनिक भू-वैज्ञानिकों ने अनेक अनुसंधान कर यह सिद्ध किया है कि पृथ्वी भी अन्य प्राणियों की भाँति सजीव है। इन वैज्ञानिकों में श्री एच. टी. वर्सटापेन, श्री सुगाते, श्री वेल्मेन, श्री डोकूशेव तथा डॉ. वाक्समन प्रमुख हैं। इनके अनुसार अन्य सजीव प्राणियों की भाँति मिट्टी, पत्थर, खनिजों आदि में भी स्वयं संचालित होने वाली प्रक्रिया विद्यमान है अन्यथा इनमें वृद्धि दिखना असम्भव था। पृथ्वी के स्वभाव का प्रभाव भी मानव पर पड़ता है। अनेक भू-भाग ऐसे होते हैं जिनमें परस्पर संघर्ष व स्पर्धाएँ देखी जा सकती हैं। इनमें भी क्रोध, अहंकार, युद्ध, क्रूरता, रूक्षता, शान्ति, स्नेह, दया, स्निग्धता आदि स्वभाव पाए जाते हैं। वैज्ञानिक जूलियस हक्सले पृथ्वी के स्वभाव को लेकर कहते हैं कि “जरा भूमि का चमत्कार देखिए। अफ्रीका के सिंहों. को आप केलीफोर्निया प्रान्त या साइबेरिया भेज दीजिए। वे अपनी हिंसक वृत्ति को भूल जायेंगे और गाय, बकरी की भाँति पालतू बन जायेंगे। हक्सले ने अपनी पुस्तक 'पृथ्वी का पुनर्निर्माण' (रीमेकिंग दी अर्थ) में लिखा है-पेन्सिल की नोंक से जितनी मिट्टी उठ सकती है, उसमें दो अरब से भी अधिक कीटाणु होते हैं।"२ पृथ्वीकायिक जीवों की अवगाहना के संदर्भ में जैनागम में यह अंकित है कि इन जीवों की अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट अंगुलि के असंख्यातवें भाग है। अर्थात् सुई की नोंक के बराबर पृथ्वीकाय के भाग में असंख्य जीव होते हैं। इसकी पुष्टि नोबेल पुरस्कार विजेता न्यूजर्सी के डॉ. वाक्समन ने 'प्रिंसीपल ऑफ सॉयल माइक्रोबायोलोजी' में इस प्रकार से की है कि चम्मचभर मिट्टी में लाखों माइक्रोव असंख्य बैक्टीरिया जीव होते हैं। मिट्टी की सोंधी महक इन्हीं जीवों की देन है। (२) अपकाय ___ स्थावर जीवों का दूसरा भेद है-अप्काय या जलकाय जीव। ये भी सजीव होते हैं। जब तक विरोधी शस्त्र न लगे तब तक जल सजीव या सचित्त होता है। इन जीवों का शरीर अत्यन्त सूक्ष्म होता है। जल के अनेक प्रकार, अनेक योनियाँ व अनेक कुल हैं। जैसे-ओस, हिम, ओले, हरिततृण जल, शुद्ध जल,
१. नवनीत, अक्टूबर १९५५ २. विज्ञान के आलोक में जीव-अजीव तत्त्व, पृ. १५