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तीसरा बोल : काय छह
(स्थावर और त्रस जीवों का स्वरूप - विवरण)
(१) पृथ्वीकाय, (२) अप्काय, (३) तैजस्काय,
(४) वायुकाय, (५) वनस्पतिकाय,
(६) त्रसकाय ।
जैनधर्म अहिंसा - प्रधान धर्म है। किसी भी प्राणी की मन, वचन व काय से हिंसा न हो जाये, उन्हें कोई घात, कष्ट, पीड़ा न पहुँचे, इस हेतु प्रमादरहित तथा भेदविज्ञान, यानी विवेकपूर्वक जाग्रत जीवन जीने के लिए प्रत्येक को प्रेरित करता है । इस दृष्टि से जैनधर्म में जीवों पर विशेष और विस्तार के साथ चर्चा हुई है जिससे संसार के समस्त जीवों के बारे में परिचय प्राप्त हो सके ।
संसार अनन्त जीवों से भरा पड़ा है। कौन जीव हैं और कौन अजीव हैं ? जीवों में भी किस प्रकार के जीव हैं ? क्योंकि सामान्यतः लोगों को यह भी पता नहीं है कि अमुक जीवों के स्वरूप क्या हैं ? जीवों में भेदों का ज्ञान हो जाने पर ही हिंसा से बचा जा सकता है। अपेक्षा - विशेष को ध्यान में रखकर जीवों का वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकरण जैनागमों में मिलता है । प्रस्तुत बोल में 'काय' (Body – बॉडी), यानी 'शरीर' के आधार पर जीवों का विवेचन हुआ है।
विभिन्न पुद्गलों से विनिर्मित 'औदारिक शरीर' (Gross body — ग्रौस बॉडी) 'काय' कहलाता है। जैसे जिन जीवों का औदारिक शरीर पृथ्वी - हीरा, पन्ना, कोयला, मिट्टी, पत्थर, सोना, चाँदी, खनिज आदि हो, वे पृथ्वीकायिक जीव हैं; इसी प्रकार जिनका औदारिक शरीर जल या पानी, बर्फ, ओला, ओस आदि हो, वे अप्कायिक जीव; जिनका औदारिक शरीर आग या अग्नि, विद्युत्, उल्का, दीपक की लौ आदि हो, वे तैजस्कायिक जीव; जिनका औदारिक शरीर हवा या वायु, तूफान, आँधी हो, वे वायुकायिक जीव; जिनका औदारिक शरीर वनस्पति, जैसे - वृक्ष, लता, फल, फूल आदि हो, वे वनस्पतिकायिक जीव तथा जिन जीवों की काया त्रस हो, जैसे-लट, चींटी,