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* १६ + दूसरा बोल : जाति पाँच
सकते हैं। देव ऊर्ध्व लोक में रहते हैं। इनका आवास स्वर्ग कहलाता है। सभी प्रकार के देव और नारक समनस्क या संज्ञी होते हैं। देव और नारक का वर्णन पहले बोल में विस्तारपूर्वक हो चुका है। ___ पंचेन्द्रिय जाति के जीव इन्द्रियों की दृष्टि से सर्वाधिक विकसित माने गये हैं। इन पाँचों जातियों के जीवों में इन्द्रिय-वृद्धि का जो क्रम है, नियम है, वह एक-एक इन्द्रिय का है और वह भी निश्चित इन्द्रिय का है। ऐसा नहीं है एकेन्द्रिय जाति के जीवों में स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा रसना या अन्य कोई इन्द्रिय हो। इन जीवों में स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है, अन्य इन्द्रियाँ नहीं। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों के विषय में नियम है। चतुरिन्द्रिय जाति के जीवों में श्रोत्रेन्द्रिय नहीं होती। श्रोत्रेन्द्रिय समेत अन्य चार इन्द्रियाँ तो पंचेन्द्रिय जीवों में ही विकसित हो पाती हैं। जिन जीवों में सम्पूर्ण इन्द्रियाँ नहीं होतीं वे विकलेन्द्रिय जाति के जीव कहलाते हैं। दो इन्द्रियों से लेकर चार इन्द्रियों वाले जीव विकलेन्द्रिय जीव होते हैं। (आधार : पाँच प्रकार के संसारी जीवों का वर्णन
स्थानांग, स्थान ५)
... प्रश्नावली १. जाति के अर्थ-अभिप्राय को स्पष्ट कीजिए। २. जातियाँ कितने प्रकार की होती हैं? संक्षेप में इनका वर्णन कीजिए। ३. जीवों में इन्द्रियों के वृद्धि-क्रम को बताइये। ४. तिर्यंच जाति के जीवों का वर्णन कीजिए। . ५. द्वीन्द्रिय व त्रीन्द्रिय जाति के जीवों में कितनी और किन इन्द्रियों का अभाव होता
६. सम्मूर्छिम जीवों के बारे में प्रकाश डालिए। ७. गर्भज जीवों में कितनी इन्द्रियाँ होती हैं? ८. निगोद से क्या तात्पर्य है? कौन-से जीव निगोद काय के जीव कहलाते हैं?