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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : १४३ जैनदर्शन में जीवों का वर्गीकरण अनेक दृष्टि से हुआ है, जैसे- गति की दृष्टि से, इन्द्रियों की दृष्टि से, काया की दृष्टि से आदि -आदि । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव व गुण की अपेक्षा से भी अन्य द्रव्यों की भाँति जीवद्रव्य के भी पाँच भेद हैं - (१) द्रव्य से जीव अनन्त हैं, (२) क्षेत्र से लोक प्रमाण हैं, (३) काल से आदि - अन्तरहित हैं, (४) भाव से वर्ण, गंध, रस, स्पर्शरहित, अरूपी, जीव, शाश्वत व लोकवर्ती, (५) गुण से चेतना या उपयोग गुण। (६) पुद्गलास्तिकाय (Matter — पेटर ) पुद्गल वह द्रव्य है जिसमें पूर्ण व गलन, यानी एकत्रित व पृथक् होने की क्रियाएँ होती हैं। जिसके कारण पदार्थों की पर्यायों में या अवस्थाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। मिलने व अलग होने का स्वभाव इसमें सदा बना रहता है। यह वर्ण, गंध, रस व स्पर्श से युक्त होता है। यह एक परमाणु से लेकर स्कन्ध तक हो सकता है। यानी परमाणु अलग-अलग हो जाते हैं और ये सब मिलकर पुनः स्कन्ध रूप में परिणत हो जाते हैं । यह अविभाज्य पिण्ड नहीं है, अपितु विभाज्य है । द्रव्य, क्षेत्रादि की अपेक्षा से इसके पाँच भेद हैं (१) द्रव्य से अनन्त, (२) क्षेत्र से लोक प्रमाण, (३) काल से आदि - अन्तरहित, * (४) भाव से वर्ण, गंध, रस, स्पर्श सहित, रूपी, अजीव, शाश्वत व लोकवर्ती, (५) गुण से पूरण- गलन गुण । पुद्गल द्रव्य अनेक प्रकार के होते हैं । यथा - अणु, द्वयणुक, त्रयणुक, संख्येय, असंख्येय, अनन्त, अनन्तानन्त प्रदेश । इन सबमें दो ही मूल हैं - एक अणु और दूसरा स्कन्ध । अणु भेद, यानी पृथक्-पृथक् होने से उत्पन्न होता है जबकि स्कन्ध संघात से, भेद से और संघात - भेद दोनों से उत्पन्न होता है। आँखों से दिखाई देने वाला स्कन्ध भेद और संघात दोनों से ही निर्मित है।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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