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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * १२५ *
(५) उपगूहन, (६) स्थिरीकरण, (७) वात्सल्य, (८) प्रभावना।
इस प्रकार इन आठ अंगों के माध्यम से सम्यक्त्व को शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
सम्यक्त्व गुण-प्रधान होने से वह किसी जाति, समाज या व्यक्ति-विशेष के कारण प्राप्त नहीं होता है अपितु आत्म-शुद्धि से इसे प्राप्त किया जा सकता है। चूँकि सम्यक्त्व आत्मीय गुण है, वह इन्द्रियगोचर नहीं है। अतः उसे कैसे पहचाना जाए? तो इसके लिए यह है कि जिस प्रकार अग्नि का पता धुएँ के द्वारा चल जाता है उसी प्रकार जैनागम में पाँच गुणात्मक लक्षण बताए गए हैं . जिनके आधार पर सम्यक्त्व की पहचान हो सकती है। ये लक्षण इस प्रकार हैं. (१) प्रशम (कषायों की अल्पता), . (२) संवेग (मुमुक्षा), (३) निर्वेद (अनासक्ति), (४) अनुकम्पा (करुणा), (५) आस्तिक्य (सत्यनिष्ठा अथवा जिनवाणी पर आस्था)।
सम्यक्त्वी के विषय में आचार्यों ने कहा है कि सम्यक्त्वी के पाँच भूषण होते हैं। ये इस प्रकार हैं(१) तीर्थंकर द्वारा स्थापित धर्म में स्वयं स्थिर रहना और दूसरों को स्थिर
करने का प्रयत्न करना। (२) धर्म-शासन के बारे में फैली हुई भ्रान्तियों का निराकरण करना और
उसके महत्त्व को प्रकाश में लाना। (३) तीर्थंकर की वाणी को समझने में और समझाने में निपुणता प्राप्त
करना। । (४) धर्म-शासन की भक्ति करना और उसे सर्वाधिक महत्त्व देना। (५) श्रमण साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका इन चारों तीर्थों की
सेवा-सुश्रूषा करना।