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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल *१०७* दण्डक, तिर्यंच गति के लिए नौ दण्डक, मनुष्य गति के लिए एक दण्डक तथा देवगति के लिए तेरह दण्डक निर्धारित हैं। नरक दण्डक सम्पूर्ण लोक तीन भागों में विभक्त है-एक अधो लोक, दूसरा मध्य या तिर्यक् लोक और तीसरा ऊर्ध्व लोक। अधो लोक या नीचे के लोक में सात प्रकार की भूमियाँ बताई गई हैं। ये भूमियाँ नरक कहलाती हैं और इनमें दण्ड भोगने वाला जीव नारक कहलाता है। सातों भूमियाँ क्रमशः एक-दूसरे से नीचे हैं और इन भूमियों के बीच का जो स्थान है वह क्रमशः घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश से व्याप्त है। यानी इन भूमियों का आधार घनोदधि (ठोस जल) है। यह घनोदधि घनवात (ठोस वायु) पर टिका है और घनवात तनुवात (तरल वायु) पर और तनुवात आकाश पर अवस्थित हैं और आकाश अपना आधार स्वयं ही है। इसे अन्य आधार की अपेक्षा नहीं है। घनवात आदि के लिए वैज्ञानिक पर्यावरण या वायुमण्डल शब्द का प्रयोग करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार एक निश्चित सीमा तक भूमि या पृथ्वी के चारों ओर का वायुमण्डल सघन और फिर क्रमशः विरल होता गया है। उनका यह दृष्टिकोण घनोदधि, घनवात और तनुवात की अवस्थिति को ही प्रमाणित कर रहा है। इस प्रकार नरक भूमियाँ आकाश पर टिकी हुई हैं। सात नरक भूमियों के गोत्र व नाम इस प्रकार हैं गोत्र नाम (१) रत्नप्रभा (१) घम्मा (२) शर्कराप्रभा (२) वंशा (३) बालुकाप्रभा (३) शीला (४) पंकप्रभा (४) अञ्जना (५) धूमप्रभा (५) रिष्टा (६) तमःप्रभा (६) मघा (७) महातमःप्रभा . (७) माघवती इनमें पहला नरक रत्नप्रभा और सातवाँ नरक महातमःप्रभा है। इन भूमियों के ये नाम स्थान-विशेष के प्रभाव और वातावरण या पर्यावरण के कारण हैं। जैसे रत्नप्रभा भूमि काले वर्ण वाले भयंकर रत्नों से व्याप्त है, शर्करा भूमि तीक्ष्ण
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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