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भाषाटीकासमेतः ।
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शमादिषट्क सम्पत्तिर्मुमुक्षुत्वमिति स्फुटम् । ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्येत्येवंरूपो विनिश्वयः । सोऽयं नित्यानित्यवस्तुविवेकः समुदाहृतः ॥२०॥ केवल एक ब्रह्ममात्र नित्य है ब्रह्मसे अतिरिक्त अखिल जगत अनित्य है ऐसा निश्चय होना इसीको नित्याऽनित्य वस्तुविवेक कहते हैं ॥ २० ॥
तद्वैराग्यं जिहासा या दर्शनश्रवणादिभिः । देहादिब्रह्म पर्य्यन्ते नित्ये भोगवस्तुनि ॥ २१ ॥ देह आदि ब्रह्मपर्यन्त जितने भोग्य वस्तु हैं उनके श्रवण दर्शनकी इच्छा न होनेका नाम वैराग्य है ॥ २१ ॥
विरज्य विषयत्राताद्दोषदृष्ट्या मुहुर्मुहुः । स्वलक्षे नियतावस्था मनसश्शम उच्यते ॥ २२ ॥ शमदम आदि जो छः सम्पत्तिके लक्षण कहते हैं इन्द्रियों के जो जो विषय हैं उनसे सर्वथा विरक्त होकर आत्मवस्तुमें चित्तको सदा लगाना इसीको राम कहते हैं ॥ २२ ॥
विषयेभ्यः परावर्त्य स्थापनं स्वस्वगोलके । उभयेषामिन्द्रियाणां स दमः परिकीर्त्तितः ॥ २३ ॥ ज्ञानइन्द्रिय और कर्मइन्द्रिय इन दोनों इन्द्रियों का जो विषय हैं उससे रोकिके इन्द्रियों को अपने २ स्थानपर स्थिर रखना इसको दम कहते हैं ॥ २३ ॥
बाह्यानालम्बनं वृत्तेरेवोपरतिरुत्तमा ॥ २४ ॥ विषयोंसे इन्द्रियों की वृत्तिकी निवृत्ति होना इसीका नाम उपरति है ॥ २४ ॥