________________
देवीपुराणम्
ए - दंष्ट्राकरालं भीमातिवदनम् । घोरां गुहासकम्पितभुवनं चन्द्रार्धधरम् ॥३२॥
इच्छाविराजितरूपमचिन्त्यं तिथिगुहनक्षत्रं दुष्टविनायकविघ्नितसिद्धिदम् । सर्वजन निवह वाञ्छितसिद्धिदं सौभाग्यकान्ति बलपुष्टिकरं बाहुबलकरम् ॥३३॥ जगजवरभुजं पितृवननिलयं किम्पुरुषगीत शोभितभुवनम् । सूक्ष्मासूक्ष्म वरमुखनयनं सुरयुवति चारु चामर धृतम् ॥३४॥
ज्ञएं जगति यवनितक दिशिनिशि मन्त्रम् ।
आ आ आ आ आ आ आ आ श्र श्रा श्र श्रा ।
श्री आ आ आ आ आ दिव्यशरीरं सर्व सुवेशम् ॥३५॥
आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ ।
अनुपममशिरसं वरदं नमामि सिद्धिकरम् ॥३६॥
इति गोपेन्द्रक विष्णुगीतं समाप्तम् ॥
मनुरुवाच ।
एवं गान्धर्वविधिना गायते मधुसूदन । तुतोष शंकरस्तस्य कामं कामानुबद्धमान् ॥३७॥ वरं ब्रूहि सुरश्रेष्ठ विष्णो तुष्टस्तवानघ ।
कान्तोऽसि मम भक्तोऽसि किं करोमि वदस्व नः ॥ ३८ ॥
विष्णुरुवाच ।
योऽसावुत्पादितो देव ब्रह्मस्य सृजतः प्रजा । तं घातय महादेव सर्वदेवारि कण्टकम् ॥३६॥ देवदेव उवाच ।
मम क्रोधात्समुत्पन्नः परार्धं या च केशव । न विनाशो भवेत्तस्य किन्तु शैलोत्तमे स्थितः ॥ ४० ॥ भावना सुता गावो याः शशांक परिश्रवाः । तास्तेषां प्रीरणनं वत्स निधास्यन्ति युगे युगे । ४१ ।
१. कामानुगा नरम् ग । ३. विष्णुरुवाच क ग ।
४१३
२. करामः क ।
४. मृता ख ।