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________________ Be ८-दक्षिणा दान - प्रसाद चढाना, ब्राह्मणों आदि को दान । ६ - रथयात्रा महोत्सव एवं सामाजिक पूजा का प्रकार । १० मानसिक पूजा ध्यान दर्शन आदि परमभक्ति का स्वरूप | देवीपुराण के अनुसार मंगला देवी की स्थापना मातृकाओं के अन्तर्गत की जानी चाहिए एवं इनके एक तरफ वैष्णवी तथा दूसरी ओर ब्राह्मी की मूर्ति स्थापित होनी चाहिए।' विन्ध्यवासिनी : * विन्ध्याचल में सतत निवास करने के कारण देवी का नाम विन्ध्यवासिनी पड़ गया है । घोरासुर का वध करने के लिये उनका अवतार हुआ था। (हिमालय में नन्दा देवी के नाम से उसकी पूजा होती है) पूर्ण विधि विधान मन्त्र, पुण्य, क्रिया तथा मानसिक भक्ति भाव से पूजा किये जाने पर वह भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण करती है परन्तु स्त्रियों, बच्चों, दीनों तथा भक्तों पर वह अत्यन्त कृपालु रहती है । ' I दवीपुराण देवी विन्ध्यवासिनी के रूप का विशिष्ट वर्णन करता है। इस पुराण की विषय वस्तु देवी के क्रियाकलापों, भवतारों तथा योग और मन्त्र पादि से परिपूर्ण है विन्ध्यवासिनी का स्वरूप बतलाते हुये उन्हें कुमारी रूप में प्रदर्शित किया गया है तथा सिंहवाहिनी बतलाया गया है । उनका संग्राम विभिन्न राक्षसों के साथ होता है जिसमें वे विजय प्राप्त करती हैं तथा संसार में सुख, शान्ति और समृद्धि का साम्राज्य स्थापित करती हैं। उनके ऐश्वर्य के वर्णन में पुराणकार यह भी प्रदर्शित करता है कि सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु आदि समेत देवी की सेवा में तत्पर रहते हैं ।' बहुत सी स्त्री देवता भी उनकी परिचारिकाओं में परिगणित की गयी हैं । महामुनि नारद अपने पौराणिक रूप में उपस्थित होते है एवं महादैत्य वज्रदण्ड के यहाँ जाकर उसकी एक त्रिलोक सुन्दरी कन्या के विषय में सूचना देते हैं। यह कन्या विन्ध्य में निवास करती है। तथा दिव्य लोक की अपूर्व सुन्दरी है यह जानने के बाद वचदण्ड के मन में बड़ी ही उत्कट लालसा उत्पन्न हुई कि इस दिव्य सुन्दरी पर्वतकन्या का उपभोग किया जाय। तभी उसने अपनी सेना के साथ विजय यात्रा प्रारम्भ की। मार्ग में उसे बहुत सारे अपशकुन दिखाई दिये परन्तु फिर भी वह यात्रा पर चलता ही रहा।' विन्ध्य पर्वत पर पहुंचने के बाद उसने देवी को देखा और तब उसकी लालसा और भी अधिक बढ़ गई । प्रथम तो उसने अपने सेनापति दुर्मुख को युद्ध के लिए भेजा और वह युद्ध करते हुये विजया देवी के हाथों मारा गया । तदनन्तर काल नामक दानव आगे बढ़ा परन्तु वह भी जया देवी के द्वारा यमपुरी पहुंचा दिया गया । " १. देवीपुराण ७० / २१ २. वही १२ / ९-११ ३. वही ७/२० ४. वही २/१-३५ ५. वही १३/१-२०
SR No.002465
Book TitleDevi Puranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpendra Sharma
PublisherLalbahadur Shastri Kendriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year1976
Total Pages588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L015
File Size11 MB
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