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अध्याय ७४--
श्लोक ३१
पृ० २७८-२७६ उन नदियों, स्थानों और जंगलों के नाम जो ग्रहण के समय एवं पुण्य समयों पर पवित्र
माने जाते हैं। अध्याय ७५
श्लोक १६;
पृ० २७० वसुधारा होम, दान एवं पवित्र स्थानों, पर्वतों और नदियों के नामों का वर्णन ।
अध्याय ७६
श्लोक ६०;
प०२८१.२८४ कुछ पवित्र स्थानों के नाम; कापोत तीर्थ का माहात्म्य; शिवलिंग, देवी, सूर्य आदि देवताओं को कुण्डस्नान कराने से फल प्राप्ति; कबूतर की कथा जो युद्ध में गिर कर मर
गया था। अध्याय ७७--
श्लोक २८;
पृ०.२८५-२८८ कापोत कुण्ड की प्रशंसा; तान्त्रिक मन्त्रों एवं मुद्राओं द्वारा देवी पूजा; देवी सम्बन्धी
सोलह मुद्राओं का वर्णन । अध्याय ७८श्लोक २४;
पृ० २८६-२६० कृष्णाष्टमी व्रत का विधान; रात्रिव्रत और शिव की पूजा।
अध्याय ७६--
श्लोक ३६;
पृ० २६१-२ ४ देवी के बारह स्वरूपों की पूजा का विधान एवं फल; उमा-महेश्वर व्रत; विष्णु शंकर व्रत; लक्ष्मी पर्णा व्रत, ब्रह्म सावित्रि व्रत एवं चन्द्र रोहिणी व्रत का विधान वर्णन; देवी
मन्दिर की सफाई करने का फल; रानी कुकुमा की कथा, एवं उसका पुनर्जन्म। अध्याय ८०श्लोक ३१
पृ० २६५-२९७ देवी को हर वस्तु में व्यापकता; देवी पूजा के लिये संन्यास की आवश्यकता नही, एवं
महामाया का प्रभाव । अध्याय ८१
श्लोक २५;
पृ० २६८-२६६ कालाग्नि रुद्र का वर्णन; कालो से एकात्मकता और उसके भुवन का वर्णन, युद्धों द्वारा
सृष्टि संहार। अध्याय ८२-- श्लोक ७६;
पृ० ३००-३०४ विशिष्ट नरकों का वर्णन; एवं पापों के कारण नरक की प्राप्ति, सात्त पातालों का वर्णन; ब्राह्मण पुत्र की कथा।
। कथा।
अध्याय ८३
श्लोक ११८;
पृ० ३०५-३१२ रूरू की उत्पत्ति कार्तिकेय के मयूर से; उसका देवताओं के साथ युद्ध एवं देवताओं द्वारा देवी का स्तवन ।