________________
अध्याय ६६-,
अध्याय ६३---
श्लोक १८;
पृ० २४२.२४३ शिव के मान्य तीर्थों का वर्णन; और शिव के ६८ नामों का वर्णन । अध्याय ६४--
श्लोक ६;
१० २४४ गोरत्न व्रत का विधान; गाय एवं बैल को अलंकृत करके शिव भक्त को दान । अध्याय ६५. श्लोक १०१; ।
पृ० २४५-२५० शिव एवं उमा की शुक्ल तृतीया की पूजा; शिव-उमा का चित्र निर्माण, गुग्गुलव्रत, राजा का पुष्य स्नान; स्वप्नों के शुभ एवं अशुभ फल; कमल में मण्डल निर्माण; मण्डल में मूर्ति प्रतिष्ठा; मद्य एवं मांस का पूजा में प्रयोग ।। श्लोक ४१;
पृ० २५१-२५३ पुष्य स्नान का माहात्म्य; कलश उत्पत्ति का वर्णन; सात समुद्रों, द्वीपों, नक्षत्रों एव ग्रहों
का वर्णन; पवित्र तीर्थों का वर्णन । अध्याय ६७
श्लोक ७६;
पृ० २५४-२५८ कलश में शुभ पदार्थों को रखना; सिंहासन सजाना, राजा का ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक;
देवी देवताओं की पूजा; ब्राह्मणों दीनो एवं कन्याओं को दान और बन्दियों को क्षमादान । अध्याय ६८
श्लोक १८%;
पृ० २५६-२६० विशिष्ट स्थानों पर स्नान का माहात्म्य, मन्त्रसिद्धि के उपयुक्त स्थान; मण्डल बनाने के
लिये उपयुक्त स्थान। अध्याय ६६--
श्लोक २४;
पृ० २६१-२६२ विनायक याग का विधान; गणयाग; सूर्य पूजा और अम्बिका पूजा का विधान । अध्याय ७०
श्लोक ११;
पृ० २६३ रक्षा मन्त्र या विनायक कवच का वर्णन और उसको धारण करने का फल । अध्याय ७१श्लोक १०,
पृ० २६४ रक्षा मन्त्र की शक्ति; विभिन्न देवताओं के रक्षा बीज, एवं उनकी पूजा, मधुसूदन के
नाम में चतु! ह का वर्णन । अभ्याय ७२
श्लोक १५३;
प० २६५-२७३ दुर्ग निर्माण विधि; भूमि निर्वाचन तथा अनेक पारिभाषिक शब्द; दुर्ग में देवी पूजन;
नगर निर्माण विधि; सिंह मार्ग, राजपथ, रथ्या आदि मार्गों की निर्माण विधि। अध्याय ७३
श्लोक १५८;
पृ०२७४-२७७ अधोदुर्ग, कृत्रिमदुर्ग को निर्माण विधि; दुर्गों में विभिन्न प्रकार के लोगों का निवास स्थान; निर्माण के लिये शुभ मुहूर्त एवं शिव, दुर्गा, मातृकाओं और विनायक की पूजा।