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और विष्ण आदि दवताओं की पूजा करना आवश्यक; पूजापात्रों का चयन ।
श्लोक १०;
अध्याय ५२
आदित्य याग का विधान ।
पृ० २१६
श्लोक १०;
अध्याय ५३
ग्रह याग का विधान एवं फल ।
पृ० २१७
अध्याय ५४
श्लोक २१;
पृ० २१८-२१६ मातृ याग एवं ग्रहयाग का माहात्म्य और विधान । अध्याय ५५
श्लोक १८;
पृ० २२०-२.२३ विभिन्न प्रकार के उत्पातों का वर्णन, मातृका पूजा; ग्रहपूजा; सूर्यपूजा, लक्षहोम, कोटि
होम एवं दान आदि द्वारा उत्पातों के दुष्प्रभाव का शमन । अध्याय ५६- श्लोक ५२;
पृ० २२४-२२८ हवन करने के विविध प्रकारों का वर्णन । । अध्याय ५७श्लोक ३२;
पृ० २२६-२३१ देवी के स्वरूप का वर्णन; अनेक देवताओं के साथ पूजा, शिव और देवी की एकात्म्य .
की स्थापना। अध्याय ५८
श्लोक २५;
पृ० २३२-२३३ भाग्य नामक राजा द्वारा द्वादशी के दिन विष्णपूजन और उमा-महेश्वर पूजन और इसके फलस्वरूप वैभव प्राप्ति।
अध्याय ५६
श्लोक ३२;
पृ० २३४-२३५ विभिन्न मासों में देवी पूजा का फल; आश्विन नवरात्रों में देवी रथयात्रा महोत्सव; दीप-दान आदि का वर्णन .
अध्याय ६०
श्लोक ३२;
पृ० २३६-२३८ वृषोत्सर्ग एव गो-विवाह का विधान और फल; जीर्ण मन्दिरों का उद्धार करने का फल; उमा-शंकर, हरि-हर, अर्धनारीश्वर आदि का पूजन ।
अध्याय ६१
श्लोक २५;
पृ० २३६-२४० ब्रह्मा, शिव, देवी, अग्नि आदि के पूजन के लिये उपयुक्त तिथि-निर्वाचन; उमा महेश्वर का
दोला पूजन । अध्याय ६२श्लोक १०; .
पृ० २४१ नाना प्रकार के पुष्पों से शिवपूजन का फल ।