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________________ गया। सूखा भी समाप्त हो गया। सेठानी ईश्वरी ने सोचा यदि सद्गुरु ने आकर हमको चेताया नहीं होता तो आज हम जीवित न होते। आचार्य वज्रसेन ने भी अत्यंत विवेक से परिवार के इस अहोभाव को वैराग्यभाव में परिवर्तित किया। अतः संसार से विरक्त होकर श्रेष्ठी जिनदत्त तथा श्राविका ईश्वरी ने अपने चारों पुत्र - नागेन्द्र, निवृत्ति, चंद्र एवं विद्याधर के साथ उसी वर्ष वि.सं. 122 में आचार्य वज्रसेन सूरि जी के पास दीक्षा ग्रहण की। 125 वर्ष की आयु में वज्रसेन सूरि जी ने आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र के कालधर्म पश्चात् युगप्रधान का दायित्व 3 वर्ष तक निभाया। अपने दीर्घकालीन संयम जीवन में प्राकृतिक आपदाओं से जैनधर्म को पहुँची क्षति के होने पर भी यथाशक्ति चतुर्विध संघ का कुशल वहन किया एवं शासन की महती प्रभावना की। जिस वर्ष इनका कालधर्म हुआ, उसी वर्ष वि.सं. 150 में इनकी प्रेरणा से गिरनार तीर्थ का उद्धार हुआ। संघ व्यवस्था : आचार्य वज्रसेन के प्रमुख 4 शिष्य थे:1. मुनि नागेन्द्र, 2. मुनि निवृत्ति, 3. मुनि चन्द्र, 4. मुनि विद्याधर। इन चारों शिष्यों से क्रमशः चार कुलों का उद्भव हुआ। यथा1. नागेन्द्र कुल, 2. निवृत्ति कुल, 3. चन्द्र कुल, 4. विद्याधर कुल। . दुष्काल के कारण बहुत से मुनियों का स्वर्गवास हो गया था। भगवान् पार्श्वनाथ की उपकेशगच्छ की परम्परा के आचार्य यक्षदेव सूरिजी ही अनुयोगधर रह गए थे। आचार्य वज्रसेन सूरि जी ने आचार्य यक्षदेव सूरि जी से प्रार्थना की, कि उपरोक्त चारों मुनियों सहित उनकी आज्ञा के 500 साधु एवं 700 साध्वियों इत्यादि बचे हुए साधुओं को आगमों की वाचना प्रदान करें। आचार्य यक्षदेव सूरि जी के ज्ञान से संपूर्ण संघ को लाभ हुआ एवं उनके जैसे अनेक विद्वान साधु तैयार हुए। आचार्य वज्रसेन सूरि जी के कालधर्म पर आचार्य यक्षदेव सूरि जी ने ही चारों प्रमुख मुनियों को योग्य जानकर सूरि (आचार्य) पद पर स्थापित किया। युगप्रधान आचार्य के क्रम में आचार्य वज्रस्वामी के बाद आचार्य आर्यरक्षित, उनके बाद आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र एवं उनके बाद आचार्य वज्रसेन सूरि जी हुए। . महावीर पाट परम्परा 64
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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