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________________ 14. आचार्य श्रीमद् वज्रसेन सूरीश्वर जी विवेकसिंधु विनयविभूति, प्रकटे कुलदीपक चार । दीर्घायुधनी वज्रसेन जी, नित् वंदन बारम्बार ॥ युगप्रधान आचार्य वज्रसेन सूरि जी ने अपने 128 वर्ष के सुदीर्घ जीवनकाल में शासन की महती प्रभावना की । भगवान् महावीर की परम्परा में 14वें पाट पर वे सुशोभित हुए तथा श्रमण संघ के 4 कुल - नागेन्द्र, निवृत्ति, चंद्र एवं विद्याधर इन्हीं के प्रमुख शिष्यों के द्वारा उद्भव में आए। उत्तर भारत उनका प्रमुख विचरण क्षेत्र रहा। जन्म एवं दीक्षा : इनका जन्म कौशिक ( भारद्वाज) गौत्रीय परिवार में वि. सं. 22 ( ईस्वी पूर्व 35 ) में हुआ । उम्र का एक दशक भी पूर्ण नहीं हो पाया कि वे त्याग के कलिश - कठोर पथ पर अग्रसर होने को उत्सुक हुए। पूर्ण वैराग्य के साथ 9 वर्ष की आयु में वि. सं. 31 (ई.पू. 26) में उन्होंने मुनि जीवन में प्रवेश किया। इनके दीक्षागुरु संभवतः गणाचार्य सिंहगिरि सूरि जी थे। आयु एवं संयम पर्याय में वे वज्रस्वामी से बड़े थे किंतु उनके कालोपरान्त ही उन्होंने संघ का दायित्व संभाला। शासन प्रभावना : आगम आदि साहित्य का गंभीर अध्ययन कर मुनि वज्रसेन जैन दर्शन के विशिष्ट ज्ञाता बने । वीर निर्वाण की छठी शताब्दी का उत्तरार्ध भीषण संकट का समय था । वज्रसेन जी ने अपने जीवनकाल में 2 भयंकर बारह वर्षीय दुष्काल देखे। एक 12 वर्षीय दुष्काल वज्रस्वामी के आचार्य काल में पड़ा तथा दूसरा वज्रसेन सूरि जी के समय में पड़ा । वि.सं. 110 ( ईस्वी सन् 53 ) में दूसरा दुष्काल प्रारंभ हुआ। आचार्य वज्रस्वामी तब वृद्धावस्था में थे। वि.सं. 114 में वज्रस्वामी ने वज्रसेन जी को गणाचार्य पद पर नियुक्त कर कुंकुण देश में विचरण करने का आदेश दिया। वज्रस्वामी जी ने आचार्य वज्रसेन सूरि जी को कहा कि जिस दिन 1 लाख मुद्रा मूल्य के शालि पाक की उपलब्धि होगी, वही दुष्काल का समाप्ति दिन होगा। वज्रसेन सूरि जी को गण की महावीर पाट परम्परा 62
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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