SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो गई थी। अवन्तिनरेश सम्राट विक्रमादित्य आदि 18 राजा उनके परम भक्त बने। राजा देवपाल ने उन्हें 'दिवाकर' का बिरुद प्रदान किया। राज सुविद्याओं के आकर्षण से सिद्धसेन दिवाकर जी के जीवन में शिथिलता आने लगी। सचित्त जल, अनेषणीय आहार, हाथी पर बैठना आदि वृत्तियां उनके जीवन में प्रवेश कर गए। उनके अपयश की इस गाथा से दूर देश में बैठे गुरु वृद्धवादी को दुःख हुआ। आचार्य वृद्धवादी ने युक्तिपूर्वक सिद्धसेन सूरि जी के अभिमान को खंडित किया एवं प्रायश्चितपूर्वक धर्म में स्थिर किया। सन्मतितर्क, न्यायावतार, 32 द्वात्रिंशिकाएं आदि ग्रंथों की उन्होंने रचना की। उज्जयिनी के महाकाल मंदिर में रूद्रलिंग का स्फोटन कर पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा का प्रकटन, उनके द्वारा रचित महाप्रभावक कल्याणमंदिर स्तोत्र से संभव हुआ। आचार्य आर्यरक्षित सूरि जी : मध्यप्रदेश अन्तर्गत मालव में दशपुर (मंदसौर) में इनका जन्म हुआ। माँ रूद्रसोमा की भावना को साकार करने हेतु उन्होंने दृष्टिवाद के अध्ययन हेतु आचार्य तोषलिपुत्र के पास दीक्षा ग्रहण की। वि.सं. 74 में 22 वर्ष की युवावस्था में वे दीक्षित हुए। आगमों के तलस्पर्शी अध्ययन के बाद आचार्य भद्रगुप्त सूरि जी एवं आचार्य वज्रस्वामी जी से 9.5 पूर्वो का अर्थसहित अध्ययन किया। आर्यरक्षित सूरि जी स्वस्थ परम्परा के पोषक थे। उन्होंने चातुर्मास की स्थिति में 2 पात्र रखने की प्रवृत्ति स्वीकार कर नई परम्परा को जन्म दिया। ___ उनके शासनकाल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य अनुयोग व्यवस्था का हुआ। पहले आगमों का अध्ययन सभी नय एवं सभी अनुयोगों के साथ होता था। यह एक जटिल व्यवस्था थी। अस्थिरमति शिष्यों का धैर्य डोल जाता था। आचार्य आर्यरक्षित सूरि जी को अपने विंध्य मुनि जैसे प्रखर शिष्यों को हो रही विस्मृति के निमित्त से अनुयोग व्यवस्था का विचार आया। अतः आगम वाचना को सरल बनाने हेतु क्रम के 4 अनुयोगों में विभक्त किया गया - चरण करणानुयोग (श्रमणधर्म, संयम, गुप्ति, समिति प्रधान आचारांग आदि), धर्मकथानुयोग (धर्मकथा प्रधान उत्तराध्ययन, ज्ञाताधर्मकथा आदि), गणितानुयोग (गणित प्रधान सूर्यप्रज्ञप्ति आदि) एवं द्रव्यानुयोग (द्रव्य, पर्याय प्रधान दृष्टिवाद आदि)। उनका कालधर्म वी.नि. 597 (वि.सं. 127) में हुआ। महावीर पाट परम्परा 61
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy