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________________ मैं इतना निर्बल हूँ जो इस पंडित मरण में गुरुदेव ने अपने साथ मुझे नहीं लिया?" प्रभु और गुरु को स्मरण करता हुआ वह वहां से चलकर वज्रस्वामी जिस पर्वतमाला पर अनशन कर रहे थे, उसी पर्वत की तलहटी में पत्थर की शिला पर अनशन ग्रहण कर खड़े हो गए। गर्मी के ताप से बालमुनि का कोमल शरीर झुलसने लगा। वह शैक्ष मुनि उन सबसे पहले स्वर्ग का अधिकारी बना। बालमुनि की उच्चतम साधना के प्रभाव से देवतागण महोत्सव हेतु आए। देवागमन देखकर वज्रस्वामी जी ने ज्ञानबल से बालमुनि के देवलोकगमन का समाचार सभी श्रमणों को दिया। सभी श्रमणों ने बालमुनि के संयम को वन्दन किया। वज्रस्वामी जी भी 500 श्रमणों सहित शीघ्र ही समाधिकरण कर कालधर्म को प्राप्त हुए। उनके संयम के प्रभाव से देवलोक से इन्द्र भी आया और रथ में बैठे इन्द्र ने उस पर्वत की प्रदक्षिणा दी। उस पर्वत का नाम 'रथावर्त पर्वत' हो गया। अपने जीवनकाल में उन्होंने आचार्य आर्यरक्षित को साढ़े नौ पूर्वो का ज्ञान दिया। अतः आचार्य वज्रस्वामी जी का कालधर्म होते ही 1) दसवें पूर्व की ज्ञान संपदा, 2) चौथा अर्धनाराच शारीरिक संहनन एवं 3) चौथा संस्थान - इन 3 वस्तुओं को विच्छेद हो गया। गगनगामिनी विद्या वज्रस्वामी के पास थी, किंतु भविष्य में कोई भी गलत उपयोग न करे, इसलिए उन्होंने यह विद्या किसी को नहीं दी। • समकालीन प्रभावक आचार्य . आचार्य सिद्धसेन सूरि जी : उज्जयिनी निवासी ब्राह्मण देवर्षि और देवश्री के पुत्र विद्वान सिद्धसेन को अपने पांडित्य का खूब अभिमान था। जैनाचार्य वृद्धवादी सूरि जी शास्त्रार्थ व वाद-विवाद में अत्यंत कुशल थे। अपनी प्रतिज्ञा अनुसार सिद्धसेन उन्हीं का शिष्यत्व ग्रहण करता, जिससे वह परास्त हो। वृद्धवादी सूरि जी ने गोपालकों की साक्षी में अकाट्य तर्को से उसे परास्त किया एवं उसे दीक्षा प्रदान कर नाम कुमुदचन्द्र मुनि रखा। वे कुशाग्र बुद्धि के धनी एवं आशु कवि थे। आचार्य पद पर आरूढ़ होने के बाद वे आचार्य सिद्धसेन सूरि के नाम से विश्रुत हुए। चित्रकूट (चित्तौड़) में भंडार में से सैन्य सर्जन विद्या व स्वर्ण सिद्धि विद्या उन्हें प्राप्त महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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