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________________ को दूध और शत्रुजय नदी के जल से धुलवाया। आचार्य श्री वज्रस्वामी जी के करकमलों से तक्षशिला से आई भगवान् ऋषभदेव स्वामी जी की जिनप्रतिमा की अंजनश्लाका-प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। दस पूर्वो की विशाल ज्ञानराशि के वे अंतिम संरक्षक थे। महानिशीथ सूत्र के तृतीय अध्ययन में प्राप्त उल्लेखानुसार पंचमंगल-महाश्रुतस्कंध (नमस्कार महामंत्र) को स्वतंत्र ग्रंथ के बजाए मूल सूत्रों के साथ नियोजित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य उन्होंने किया। कालधर्म : वि.सं. 110 (ईस्वी सन् 53) में 12 वर्षीय दुष्काल का पुनः प्रकोप हुआ। आचार्य वज्रस्वामी को यह दुष्काल पिछले वाले से भयावह प्रतीत हुआ। अब उन्हें अपनी आयुष्य की अल्पता एवं शारीरिक क्षीणता का अनुमान हो चुका था। वि.सं. 114 में दुष्काल अपनी चरम सीमा पर था। प्रासुक आहार की उपलब्धि अत्यंत कठिन हो गई थी। वज्रस्वामी ने आपातकालीन स्थिति में भूख की शांति के लिए लब्धि पिण्ड (लब्धि द्वारा निर्मित भोज्य सामग्री) ग्रहण करने का या अनशन स्वीकार करने का विचार अपने सभी साधुओं के सामने रखा। संयमनिष्ठ श्रमणों ने कहा - "भगवन्! दोष सहित आहार हमें किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं है। अब हम अनशनपूर्वक चारित्र धर्म की ही आराधना करेंगे।" मुनियों का दृढ़ आत्मबल देख वज्रस्वामी जी प्रसन्न हुए। गण सुरक्षा हेतु स्वयं से दीक्षा पर्याय में ज्येष्ठ आचार्य वज्रसेन सूरि को गणाचार्य नियुक्त कर 500 योग्य श्रमणों के साथ कुंकुण देश में विचरण करने का आदेश दिया। ___ वे स्वयं अन्तावस्था जानकर अनशन करने के इच्छुक थे उनका विशाल श्रमण समुदाय भी उनके पथ का अनुसरण करना चाहता था। ___मुनिमण्डल में सबसे छोटा एक बालमुनि था। वज्रस्वामी जी उसकी बाल्यावस्था के कारण उसे अनशन में साथ नहीं लेना चाहते थे। उन्होंने कहा - "वत्स! अनशन का मार्ग बहुत कठिन है। तुम बालक हो। तुम यहीं नगर में रूक जाओ।" लेकिन बालमुनि रूकने को तैयार नही हुआ। अनशन की कठोरता से वह विचलित नहीं हुआ। वज्रस्वामी जी ने किसी काम के बहाने से बालमुनि को शहर में भेजा और स्वयं ससंघ वहां से विहार कर गए। एक पर्वत के शिखर पर पहुंचकर वज्रस्वामी जी एवं 500 श्रमणों ने यावज्जीवन अनशन स्वीकार किया। उधर, जब वह बालमुनि कार्य करके उपाश्रय वापिस लौटा, तो उसे एक भी साधु दिखाई नहीं दिया। वह दु:खी हुआ और चिंतन करने लगा - "क्या महावीर पाट परम्परा 59
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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