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________________ क्षयोपशम से नवजात शिशु के मन में ऊहापोह प्रारंभ हुआ। वह बार-बार उस 'दीक्षा' शब्द का चिन्तन करता रहा, जिसके कारण उसको 'जातिस्मरण ज्ञान' की प्राप्ति हुई। उसने देखा कि गौतमस्वामी जी द्वारा अष्टापद पर्वत पर प्रतिबोध पाकर कंडरिक - पुंडरिक के अध्ययन को रोज स्वाध्याय करने वाले वैश्रमण देव का जीव ही वह है । उसकी चिंतन धारा आगे बढ़ी । " पुण्य भाग पिता ने संयम ग्रहण कर लिया है, मेरे लिए भी अब यही मार्ग श्रेष्ठ है। इस उत्तम पथ की स्वीकृति में माँ की ममता बाधक बन सकती है।" बालक ने सोचा कि जब तक मेरी मां का मुझपर मोह है, तब तक मेरी दीक्षा का मार्ग प्रशस्त नही हो सकता । अतः ममता के बंधन को तोड़ने के लिए बालक ने रूदन प्रारंभ किया। वह निरंतर रोता रहता । सुनंदा की लोरियां, खिलौने, स्तनपान, औषधि, मंत्र कुछ भी उसे चुप नहीं करा पाता था। 6-6 महीने तक वह बालक रोता रहा । सुनंदा बालक के निरन्तर रोने से दुःखी हो गई । 6 महीने बाद एकदा तुंबवन में सिंहगिरि सूरि जी पधारे। उन्हें पक्षियों का कलरव सुनाई दिया । शकुन विज्ञान के आधार पर उन्होंने मुनि धनगिरि व समित को कहा कि आज जो अचित्त सचित्त मिले, ले आना। मुनि धनगिरि का पदार्पण अपने ही घर में हुआ। बालक रूदन से तंग आ चुकी सुनंदा ने उन्हें पिता के दायित्व का उपालंभ देते हुए वह 6 माह का बालक अपने भाई मुनि समित व सखियों की साक्षी में बालक को मुनिराज के पात्र में वोहरा दिया। मुनि धनगिरि के पास आते ही बालक चुप हो गया। पात्र भारी होने से मुनि का कंधा झुक गया। वे पुनः उपाश्रय आए । आचार्य सिंहगिरि के मुख से सहसा निकल गया ये वज्र जैसा क्या लाए हो? पात्र में बालक का सौम्य वदन, तेजस्वी भाल एवं चमकते नेत्रों से आचार्य सिंहगिरि को आभास हो गया कि यह बालक भविष्य में जैन जगत् का सूर्य बनेगा । वह बालक 'वज्र' के नाम से जाना जाने लगा। साध्वियों के उपाश्रय में शय्यातर महिला को शिशु संरक्षण का दायित्व संभलाकर आचार्य सिंहगिरि ने वहाँ से विहार कर दिया । झूले में झूलते बालक वज्र का अधिकांश समय साध्वी वृंद के पास में बीतता । बालक वज्र पदानुसारिणी लब्धि का धारक था, जिसके प्रभाव से साध्वियों के स्वाध्याय के ध्यानपूर्वक सुनने मात्र से बालक वज्र को 11 अंगों का पूर्णज्ञान हो गया। जैसे-जैसे साध्वी जी सूत्रों का उच्चारण करते, बालक वज्र भी उसका वैसे ही स्मरण कर लेता । अब प्रसन्नवदन पुत्र को देख माँ सुनन्दा की ममता जाग उठी। जब बालक वज्र 3 वर्ष का हो गया, तब आचार्य सिंहगिरि का दोबारा तुम्बवन में आगमन हुआ। सुनन्दा ने अपने पुत्र महावीर पाट परम्परा 56
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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