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________________ 12. आचार्य श्रीमद् सिंहगिरि सूरीश्वर जी मतिज्ञान-श्रुतज्ञान धनी, सुगुरु पदवी धार। निर्भीक निडर सिंहगिरि सूरि, नित् वंदन बारम्बार॥ जातिस्मरण ज्ञान के धनी, सिंह समान जिनवाणी की गर्जना करने वाले आचार्य सिंहगिरि भगवान् महावीर स्वामी जी की जाज्वल्यमान पाट परम्परा के 12वें पट्टालंकार हुए। इनका सांसारिक गौत्र कौशिक था तथा वे एक विद्वान जैनाचार्य थे। इनके चार प्रमुख शिष्यरत्न थे1. स्थविर आर्य समित - वे आचार्य वज्रस्वामी के सांसारिक मामा थे। इनके संयम के अतिशय से प्रभावित होकर ब्रह्मद्वीप के तापसों ने इनके पास दीक्षा ग्रहण की। अतः वीर निर्वाण संवत् 584 में इनके शिष्य परिवार की ब्रह्मदीपिका शाखा प्रसिद्ध हुई। 2. स्थविर आर्य धनगिरि - वे आचार्य वज्रस्वामी के सांसारिक पिता थे। अपनी सगर्भा पत्नी को छोड़कर उन्होंने संयम पथ का वरण किया एवं आचार्य सिंहगिरि एवं अपने पुत्र के गुरु-शिष्य सम्बन्ध में निमित्त बने। ___ 3. स्थविर आर्य वज्रस्वामी - वे आचार्य सिंहगिरि के पट्टधर बने। 4. स्थविर आर्य अर्हद्दत्त ___आचार्य सिंहगिरि सूरि जी समर्थ ज्ञानी थे। उन्हें शकुन विज्ञान एवं सामुद्रिक शास्त्र का भी परिपूर्ण ज्ञान था। एक बार जब वे तुंबवन पधारे, तब मुनि समित और मुनि धनगिरि ने भिक्षाटन हेतु आज्ञा मांगी। उस क्षण उन्हें पक्षी का विशेष कलरव (आवाज) सुनाई दिया जिसका उपयोग देते हुए उन्होंने मुनियों को आज्ञा दी कि आज जो भी अचित्त (जीव रहित) या सचित्त (जीव सहित) पदार्थ मिले, वो ले जाना। दोनों मुनियों ने 'तहत्ति' कहकर स्वीकार किया। यह उसी का परिणाम हुआ कि वज्रस्वामी जैसे समर्थ महापुरुष जिनशासन को प्राप्त हुए। सिंहगिरि सूरि जी को बालमुनि वज्र से विशेष अनुराग था। बालमुनि की वाचना शक्ति देखकर उन्होंने समूचे साधु समुदाय की वाचना का दायित्व उन्हें सौंप दिया था। कहा जाता है कि आचार्य सिंहगिरि सूरि जी के समय में ईसाई मत (Christianity) महावीर पाट परम्परा 53
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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