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________________ 11. आचार्य श्रीमद् दिन्न सूरीश्वर जी परम तपस्वी, परम मनस्वी, वीर पट्ट अग्यार। दिन्न सूरि जी आत्मसाधक, नित् वंदन बारम्बार॥ शासननायक भगवान् महावीर स्वामी की 11वीं पाट पर आचार्य दिन्न सूरि जी सुशोभित हुए। वे वीर निर्वाण की पाँचवी शताब्दी के अग्रगण्य विद्वान थे। इनका सांसारिक गौत्र गौतम था। . आचार्य इन्द्रदिन्न सूरि जी के मोढेरा देश में पदार्पण से शासन प्रभावना की नई गतिविधियाँ सम्पन्न हुई। उसी का विस्तार इनके शासनकाल में हुआ। दक्षिण के कर्नाटक क्षेत्र में भी इनकी धर्मस्पर्शना हुई जिससे न केवल विविध प्रतिष्ठा प्रसंग हुए बल्कि अनेकों ने सर्वविरति एवं देशविरति व्रत अंगीकार किए। उस समय की परंपरा अनुसार कोई भी साधु-साध्वी जी कालधर्म प्राप्त करते थे, तो अन्य मुनि उनके पार्थिव देह को जंगल या किसी भी निर्जन स्थान पर लाकर परठ देते थे। परिणामस्वरूप, वह शरीर जानवरों के काम आता था। इस प्रकार की प्रवृत्ति संघ में गतिमान थी। आचार्य दिन्न सूरीश्वर जी के समय में चंदेरी नगर में एक साधु कालधर्म को प्राप्त कर गए। अन्य साधुओं ने उनके देह को वोसिरा दिया किंतु पीछे गृहस्थ श्रावकों ने उस पार्थिव देह का अग्नि संस्कार किया। तब से आचार्य दिन्न सूरि जी की मौन स्वीकृति से इस प्रकार की प्रथा का आरंभ हुआ। यह अग्निदान की प्रथा आज पर्यन्त चालू है। ___ वे अत्यंत त्यागी और तपस्वी थे। प्रतिदिन नीवि का पच्चक्खाण उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। उपधि में मात्र कुल 14 उपकरण ही वे रखते थे। उनके 2 शिष्य प्रमुख थे - 1. आर्य शान्तिश्रेणिक (शान्तिसेन)-इनसे उच्चनागरी शाखा का उद्भव हुआ। तत्त्वार्थसूत्र रचयिता आचार्य उमास्वाति भी इसी परम्परा के थे; 2. आर्य सिंहगिरि-वे जातिस्मरण ज्ञान के धारक थे एवं दिन्न सूरि जी के पट्टधर बने। महावीर पाट परम्परा 51
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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