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________________ एक बार महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी जी से सूक्ष्म निगोद की सरल व संक्लिष्ट व्याख्या सौधर्मेन्द्र ने सुनी। उसने प्रश्न किया - "भगवन्! क्या भरत क्षेत्र में निगोद सम्बन्धी ऐसी ही व्याख्या करने वाले कोई गुरुदेव हैं?" सीमंधर स्वामी जी ने केवलज्ञान के आलोक में देखते हुए आचार्य श्याम (कालक) का नामोल्लेख किया। सौधर्मेन्द्र वृद्ध ब्राह्मण के रूप में श्यामाचार्य के पास आया। हस्तरेखा के आधार पर उन्होंने जान लिया कि इस जीव की आयुष्य पल्योपम प्रमाण है। अतः यह वृद्ध साधारण नहीं। उन्होंने कहा - तुम मानव नहीं, देव हो। इन्द्र सन्तोषपूर्वक अपने स्वरूप में प्रकट हुआ एवं निगोद का स्वरूप पूछा। जैसा विवेचन सीमंधर स्वामी जी ने किया था, वैसा ही सांगोपांग विवेचन श्यामाचार्य जी ने किया। इन्द्र अभिभूत हो गया एवं रहस्य उद्घाटित किया कि सीमंधर स्वामी से उनका परिचय सुनकर ही उनके ज्ञान की विशालता जानने ही वह वहाँ आया। श्यामाचार्य ने भावपूर्वक श्री सीमंधर स्वामी को वंदन किया। इन्द्र आगमन की घटना सभी के लिए जिनवाणी में आस्थाशील बनाए, इस उद्देश्य से अपने आने के सांकेतिक चिन्ह स्वरूप इन्द्र ने उपाश्रय का द्वार पूर्व से पश्चिमाभिमुख कर दिया। उनके शिष्य गोचरी करके लौटे, तब उपाश्रय का दार उल्टी दिशा में देखकर तथा गुरुमुख से संपूर्ण वृत्तांत सुनकर विस्मयाभिभूत हो गए। वे एक गीतार्थ आचार्य थे। आचार्य श्याम (कालक) ने चौथे उपांग आगम श्री प्रज्ञापना (पन्नवणा) सूत्र जैसे विशालकाय तत्त्वज्ञान कोष की रचना कर हम सभी पर बहुत उपकार किया। जीव एवं अजीव तत्त्वों की बहुत सुन्दर विवेचना इस आगम सूत्र में की गई है। इसमें 36 प्रकरण हैं। यह समवायांगे सूत्र (अंग आगम) का उपांग माना जाता है। यह आगम द्रव्यानुयोग का हिस्सा है। ___अपनी ज्ञान निधि से जिनशासन को आलोकित करते-करते आचार्य श्याम (कालक) 96 वर्ष 1 मास में 1 दिन कम आयु भोगकर वी.नि. 376 (ईस्वी पूर्व 151) में स्वर्गवासी हुए। --- ..... --- महावीर पाट परम्परा 50
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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