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10. आचार्य श्रीमद् इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी
देव - देवेन्द्र - नरेन्द्र पूजित, सूरि इन्द्रदिन्न आधार । जिनशासन के महाप्रभावक, नित् वन्दन बारम्बार ॥
भगवान महावीर के निर्वाण की चौथी शताब्दी में हुए आचार्य इन्द्रदिन्न सूरि जी जिनशासन के महान् प्रभावक आचार्य एवं वीर परम्परा के 10वें पट्टधर हुए। आचार्य सुस्थित - आचार्य सुप्रतिबुद्ध के स्वर्गगमन पश्चात् वी. नि. 339 में कौशिक गौत्रीय आर्य इन्द्रदिन्न गणाचार्य/पट्टाचार्य नियुक्त किए गए।
. विशेषत: गुजरात के मोढेरा प्रदेश में उन्होंने धर्म की महती प्रभावना की एवं अनेकों भव्य जनों को दीक्षा प्रदान की । इनके गुरु भाई आचार्य प्रियग्रंथ सूरि मंत्र विद्या के विशिष्ट ज्ञाता थे। चित्तौड़ के सन्निकट हर्षपुर नगर में उनके द्वारा मन्त्रित वासक्षेप के दिव्य प्रभाव से न केवल बकरों की बलि रुक गई बल्कि ब्राह्मण समाज भी जिनधर्म के प्रभाव से चमत्कृत रह गया।
इन्द्रदिन्न सूरि जी के पाट पर आचार्य आर्यदिन्न सूरि जी आसीन हुए। श्यामाचार्य जैसे शासनप्रभावक विद्वान् आचार्य भी आ. भी इन्द्रदिन्न सूरि जी समकालीन हुए ।
समकालीन प्रभावक आचार्य ●
श्री श्यामाचार्य (कालकाचार्य) :
वाचनाचार्य श्याम (जिन्हें कालकाचार्य प्रथम भी कहते हैं) का जन्म वी.नि. 280 (वि.पू. 190, ई.पू. 247) एवं दीक्षा वी. नि. 300 (वि.पू. 170) में हुए ।
महावीर पाट परम्परा
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