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________________ महागिरि की परम्परा के जिनकल्पतुल्य साधना करने वाले श्रमण भी अच्छी संख्या में थे। साधु-साध्वी जी के लिए स्वाध्याय - योग एवं जपयोग की विशेष प्रधानता उस समय रहती थी। योग्य पात्रों को ही पूर्वो का गूढ़ ज्ञान दिया जाता था। कालधर्म : 68 वर्षों के संयम पर्याय में 48 वर्षों तक श्रमण संघ का नेतृत्त्व करते हुए 96 वर्षों की आयु को पूर्ण कर वी. नि. 339 आचार्य सुस्थित सूरि जी कलिंग के कुमारगिरि पर्वत पर स्वर्गवासी बने । इस पर्वत को आज खण्डगिरि पर्वत अथवा उदयगिरि पर्वत के नाम से जाना जाता है एवं उस समय के अनेकानेक शिलालेख वहाँ उपलब्ध होते हैं। आचार्य सुप्रतिबुद्ध भी संभवत: उसी क्षेत्र में स्वर्गवासी बने । महावीर पाट परम्परा 48
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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