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9. आचार्य श्रीमद् सुस्थित सूरीश्वर जी
आचार्य श्रीमद् सुप्रतिबुद्ध सूरीश्वर जी
--- ..... --- भ्रातृदय साधक श्री सुस्थित, सुप्रतिबुद्ध दुर्वार।
कोटिक गच्छ के आद्य प्रवर्तक, नित् वन्दन बारम्बार॥ चरमतीर्थपति भगवान् श्री महावीर स्वामी जी की नौंवी पाट पर आचार्यबंधु द्वय सुस्थित सूरि जी एवं सुप्रतिबुद्ध सूरि जी विराजमान हुए। इन दोनों की निश्रा में हुई आगम वाचना ऐतिहासिक रही एवं अब तक प्रभु वीर का श्रमण संघ अब कोटिक गच्छ कहलाया जाने लगा। जन्म एवं दीक्षा : ___ आर्य सुस्थित एवं सुप्रतिबुद्ध - ये दोनों सहोदर (सगे) भाई थे। इनका जन्म व्याघ्रापात्य गौत्रीय राजकुल में, काकंदी नगरी में हुआ था। आचार्य सुस्थित का जन्म वी.नि. 243 (वि.सं. 227, ई.पू. 284) में हुआ। 31 वर्षों तक गृहस्थ अवस्था में रहकर वे श्रुतसंपन्न आचार्य सुहस्ती के शिष्य बने। सुप्रतिबुद्ध.भी उनके गुरुभाई बने। शासन प्रभावना :
आचार्य सुहस्ती सूरि जी की छत्रछाया में दोनों का उत्तरोत्तर विकास हुआ एवं सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के क्षेत्रों में दोनों की अविचारणीय अभिवृद्धि हुई। वी.नि. 291 में आचार्य सुहस्ती सूरि जी के स्वर्गवास पश्चात् उनके गण का दायित्व आचार्य सुस्थित ने संभाला। पद ग्रहण के समय उनकी अवस्था 48 वर्ष की थी। गच्छ के प्रमुख संचालक संभवतः आचार्य सुस्थित थे किन्तु उनके सांसारिक बंधु एवं गुरुबंधु आचार्य सुप्रतिबुद्ध उनके अनन्य सहयोगी थे। वे दोनों अत्यंत विशिष्ट ज्ञान के धनी थे। तीर्थंकर दृष्ट द्रव्यों के करोड़वे अंश को प्रत्यक्ष देखने में समर्थ थे। ___ वीर निर्वाण संवत् 190 के आसपास पाटलीपुत्र (पटना) में आचार्य श्री स्थूलिभद्र सूरि जी की अध्यक्षता में पहली आगमवाचना हुई थी। किंतु कालक्रम से मुनियों के पठन-पाठन की अव्यवस्था होने से अब दूसरी वाचना की आवश्यकता प्रतीत हुई। पटना में बौद्धों का आधिपत्य
महावीर पाट परम्परा
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