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________________ अमूल्य प्रभावना करने वाले संप्रति महाराज को शास्त्रों में 'परमार्हत्' के विशेषण से संबोधित किया है। संघ व्यवस्था : आचार्य महागिरि के 8 शिष्य प्रमुख थे - उत्तर, बलिस्सह, धनाढ्य, श्री आढ्य, कौडिन्य, नाग, नागमित्र एवं रोहगुप्त। इनके अंतिम शिष्य रोहगुप्त के जिनवाणी विरुद्ध प्ररूपणा करने से उसे निन्हव घोषित किया गया एवं उससे त्रैराशिक मत का उद्भव हुआ। __ आचार्य सुहस्ती के प्रमुख शिष्य 12 थे - आर्य रोहण, यशोभद्र, मेघगणी, कामर्द्धि गणी, सुस्थित, सुप्रतिबुद्ध, रक्षित, रोहगुप्त, ऋषिगुप्त, श्रीगुप्त, ब्रह्मगणी, सोमगणी। आचार्य सुहस्ती ने हमेशा महागिरि जी के निर्णयों को गुर्वाज्ञा माना। इसी कारण संघ में सदैव एकता रही। किंतु दुष्काल के समय में अनेकों बार साधु-साध्वी जी की भिक्षा का लाभ राजद्रव्य से होता था। महागिरि जी जिनकल्प तुल्य साधक थे। अतएव उनके लिए यह पूर्णतः अयोग्य था। किंतु सुहस्ती सूरि जी ने इसे द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव एवं राजद्रव्य की सर्वव्यापकता को अपवाद स्वरूप स्वीकार कर लिया था। अतः शिथिलाचार एवं सदोष आहार की आशंका से आचार्य महागिरि ने आचार्य सुहस्ती से अपना सांभोगिक (भोजन आदि का व्यवहार) सम्बन्ध विच्छेद कर लिया था, किंतु सुहस्ती सूरि जी की विनयपूर्ण क्षमापणा के कारण ऐसा प्रतिबंध हटा लिया। ऐसा कथानक कतिपय ग्रंथों में मिलता है। कालधर्म : ___ 30 वर्ष गृहस्थावस्था , 40 वर्ष मुनि अवस्था, 30 वर्ष आचार्य अवस्था इस प्रकार शतायुधनी आचार्य महागिरि का कालधर्म मालव प्रदेश के गजाग्रपद (गजेन्द्रपुर) में वी.नि. 245 (वि.पू. 225) में हुआ। तत्पश्चात् 46 वर्ष तक युगप्रधान आचार्य पद को अलंकृत करने के बाद शतायु धनी आचार्य सुहस्ती का कालधर्म उज्जैन (वर्तमान मध्य प्रदेश) वी.नि. 291 (ई. पू. 236) में हुआ। इनके पाट पर आचार्य सुस्थित व आचार्य सुप्रतिबुद्ध हुए। - ..... --- महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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