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8. आचार्य श्रीमद् महागिरि स्वामी जी
आचार्य श्रीमद् सुहस्ती सूरीश्वर जी
मेरुगिरि सम अविचल साधक, महागिरि गुणागार।
सम्प्रति बोधक गुरु सुहस्ती, नित् वंदन बारम्बार॥ शासननायक भगवान् महावीर की पाट परम्परा के आठवें क्रम पर आचार्य स्थूलिभद्र स्वामी जी के 2 समर्थ शिष्य - आचार्य महागिरि एवं आचार्य सुहस्ती जी शोभायमान हुए। महागिरि जी जिनकल्प तुल्य तप के कठोर साधक एवं आचार्य सुहस्ति दीर्घदर्शिता एवं जिनशासन प्रभावना की अतुल प्रतिबोधशक्ति के धनी थे। जन्म एवं दीक्षा :
आचार्य महागिरि का जन्म एलापत्य गौत्रीय परिवार में वी.नि. 145 (वि.पू.325, ई.पू. 382) में हुआ। आचार्य सुहस्ती का जन्म वशिष्ठ गौत्रीय परिवार में वी.नि. 191 (वि.पू. 325, ई. पू. 336) में हुआ। परिशिष्ट पर्व में फरमाया गया है। आर्य महागिरि एवं आर्य सुहस्ति का बाल्यकाल में पालन आर्या यक्षा साध्वी जी के आश्रय में हुआ। इसी कारण से उनके नाम से पूर्व 'आर्य' विशेषण जुड़ा हुआ है। (लोकश्रुति अनुसार 'आर्य' शब्द की परंपरा यहीं से प्रारंभ हुई। सुधर्म स्वामी, जंबू स्वामी आदि को भी 'आर्य' लिख दिया जाता है।) दोनों ने क्रमशः 30-30 वर्ष की आयु में आचार्य स्थूलिभद्र के कर-कमलों से प्रव्रज्या ग्रहण की। ___ आचार्य महागिरि, आचार्य सुहस्ती से आयु एवं दीक्षा पर्याय में 46 वर्ष बड़े थे। सुहस्ती सूरि जी की दीक्षा के समय स्थूलिभद्र जी अंतावस्था में थे। अतएव उनके गुरुभाई ने उनके गुरु की भाँति उनका पालन किया।
शासन प्रभावना :
आचार्य स्थूलिभद्र जी ने आचार्य महागिरि को सुयोग्य जानकर 11 अंग एवं 10 पूर्वो का अर्थसहित ज्ञान प्रदान किया। लगभग 40 वर्षों तक महागिरि जी अपने गुरु के साथ रहे।
महावीर पाट परम्परा
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