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________________ काउसग्ग किया। शासनदेवी साध्वी यक्षा को सीमंधर स्वामी जी के पास ले गई। वहां जो प्रभु ने देशना दी थी, साध्वी यक्षा को एक बार सुनते ही याद हो गई। देशना पश्चात् प्रभु ने समाधान करते हुए कहा कि साध्वी यक्षा निर्दोष है। वे पुनः भरत क्षेत्र वापिस आ गए। प्रभु के मुख से सुने हुए - भावना, विमुक्ति, रतिकल्प एवं विविक्तचर्या - ये अध्ययन चूलिका रूप में आचारांग और दशवैकालिक सूत्र में जोड़ दिए गए। इस काल में मौर्यवंश का अत्यधिक विकास हुआ। मौर्यवंश के आद्य मार्गदर्शक अर्थशास्त्र रचयिता महामात्य चाणक्य (कौटिल्य) भी इस युग की बहुचर्चित विभूति थे। उन्होंने भी जिनधर्म के सिद्धांतों का गहन अध्ययन किया था। कालधर्म : आचार्य भद्रबाहु के बाद वी.नि. 170 में स्थूलिभद्र जी ने आचार्य पद का नेतृत्त्व संभाला एवं 45 वर्षों बाद राजगृह के वैभारगिरि पर्वत पर 15 दिन के अनशन के साथ वी.नि. 215 (वि.पू. 255) में स्वर्गवासी बने। उनके कालधर्म के बाद ही - चार पूर्वो का ज्ञान, महाप्राणध्यान साधना, समचतुरस्त्र संस्थान एवं वज्रऋषभनाराच संहनन का भी विच्छेद हो गया। महावीर पाट परम्परा 39
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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