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________________ शकडाल को स्थूलिभद्र के जीवन से अनुभव मिला। उसने अपने श्रीयक पुत्र को वहाँ भेजने की भूल न की। वह उसे राज्य संचालन का प्रशिक्षण देने हेतु अपने साथ रखता था। ____ राज्य संचालन हमेशा राजनीति का केन्द्र रहा है। कार्यकुशल श्रीयक राजा को अत्यंत प्रिय लगने के कारण वह उनका अंगरक्षक बना दिया गया। राजनीतिवश, शकडाल के कट्टर विरोध कवि वररुचि ने युक्तिबद्ध तरीके से राजा को शकडाल के प्रतिकुल कर दिया। विश्वासघात एवं राजद्रोह के अनर्गल आरोपों से ग्रस्त शकडाल बेवजह राजा के क्रोध व वैर का कारण बन गया। शकडाल एवं उसके परिवार को कभी भी मौत के घाट उतार देने का राजकीय आदेश कभी भी आ सकता था। ऐसे विपत्तिकाल के समय में धर्मनिष्ठ-कर्त्तव्यनिष्ठ एवं दीर्घदर्शी शकडाल को यह अनुभव हो गया कि परिवार की सुरक्षा और यश को निष्कलंक रखने के लिए मेरे जीवन का बलिदान आवश्यक है। उसने अपने पुत्र श्रीयक को बुलाकर कहा - "यह कार्य अब तुम्हें करना होगा। जिस समय मैं राजा के चरणों में नमस्कार हेतु झुकूँ, उस समय निःशंक होकर मेरा प्राणान्त कर देना। इस समय पितृ प्राणों का व्यामोह अदूरदर्शिता का परिणाम होगा।" श्रीयक स्तब्ध रह गया। वह अपने पिता की हत्या करे, इस चिंता में वह व्याकुल हो गया। अनेकों घंटे उनकी चर्चा चलती रही। अंत में राजभय से आतंकित पिता के कठोर आदेश को अन्यमनस्क भाव से स्वीकार करना पड़ा। पिता पुत्र दोनों राजसभा में उपस्थिति हुए। शकडाल मंत्री जैसे ही राजा नंद को प्रणाम करने झुका, श्रीयक ने शस्त्र प्रहार द्वारा पिता शकडाल का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा नंद के विचारों में उथल-पुथल मच गई। श्रीयक की राजपरिवार के प्रति आस्था देखकर नंद के हृदय में शकडाल की राजभक्ति पुनर्जीवित हो उठी। सुदक्ष अमात्य को खोने का राजा को भारी गम हुआ। महामंत्री शकडाल की दैहिक क्रियाएं पूर्ण करने पर राजा ने श्रीयक को मंत्री पद ग्रहण करने को कहा। श्रीयक नम्र होकर बोला - "मेरे पितृतुल्य अग्रज स्थूलिभद्र, जो 12 वर्षों से कोशा गणिका के यहाँ हैं, वे इस दायित्व के योग्य हैं।" राजा नंद का निमंत्रण स्थूलिभद्र के पास पहुँचा। राजाज्ञा प्राप्त स्थूलिभद्र ने 12 वर्ष बाद पहली बार कोशा के प्रासाद से बाहर पैर रखा। अपने पिता की मृत्यु के समाचार से वह द्रवित हो चुका था। अपने पिता की मौत के षड्यंत्र से उसका दिल पसीज गया। विवेकसंपन्न स्थूलिभद्र ने साम्राज्य के व्यामोह में विमूढ़ होकर बिना सोचे-समझे मंत्री पद तुरंत स्वीकार करने की भूल न की। राजा की आज्ञा से अशोक वाटिका में वह चिन्तन-मनन करने लगा। महावीर पाट परम्परा 35
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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