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________________ ग्रहशान्ति स्तोत्र भी आचार्य भद्रबाहु की रचना मानी जाती है। संघ-व्यवस्था : आचार्य सम्भूतविजय जी का विशाल शिष्य परिवार था। श्री कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार उनके प्रमुख 12 स्थविर शिष्य इस प्रकार थे 1. नन्दनभद्र 2. उपनंदनभद्र 3. तिष्यभद्र 4. यशोभद्र 5. सुमणिभद्र 6. मणिभद्र 7. पुण्यभद्र 8. स्थूलिभद्र 9. ऋजुमति 10. जंबू 11. दीर्घभद्र 12. पाण्डुभद्र उनका श्रमणी समुदाय भी अत्यंत विशाल था। स्थूलिभद्र जी की सातों बहनों ने भी इनके करकमलों से दीक्षा ली थी। यक्षा, यक्षदिन्ना, भूता, भूतदिन्ना, सेणा, वेणा, रेणा - ये सभी श्रमणीवर्ग को आलोकित करती थीं। आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी के प्रमुख 4 शिष्य थे - स्थविर गोदास, स्थविर अग्निदत्त, यज्ञदत्त एवं सोमदत्त किंतु इनकी शिष्य संपदा विकसित न हो सकी। उस समय भयंकर दुष्काल के समय अनेकों साधु-साध्वी काल कवलित हो गए, तब भद्रबाहु स्वामी जी संघरक्षा हेतु बंगाल चले गए। तदुपरान्त महाप्राण ध्यान की साधना हेतु वे नेपाल पधार गए। संघ की प्रार्थना पर उन्होंने दुष्काल में बचे साधुओं को वाचना देनी प्रारंभ की। स्थूलिभद्र जी के दीक्षा गुरु संभूतविजय जी थे किंतु शिक्षा गुरु भद्रबाहु स्वामी जी रहे। उन दोनों की पाट परम्परा के स्थान के योग्य उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने दायित्व का वहन किया। कालधर्म : __आचार्य संभूतविजय जी ने अपनी ज्ञान-रश्मियों से भव्यजनों का पथ आलोकित करते हुए 90 वर्ष की आयु में अनशनपूर्वक वी.नि. 156 (वि.पू. 314, ई.पू. 371) में कालधर्म को प्राप्त किया। उस समय आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी ने 62 वर्ष की आयु में संघ संचालन का दायित्व संभाला। पाटलीपुत्र नरेश चन्द्रगुप्त मौर्य पर भी आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी का अच्छा प्रभाव रहा। __ जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी वी.नि. 170 (वि.पू.300, ई.पू. 357) में देवलोक को प्राप्त हुए। उन्हीं के साथ अर्थ वाचना की दृष्टि से श्रुतकेवली का विच्छेद हो गया। महावीर पाट परम्परा 33
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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