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2) बृहत्कल्प सूत्र : आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी की इस गद्यात्मक रचना के 6 उद्देशक
हैं। साध्वाचार की मर्यादाओं का नाम कल्प है, एवं इस लघुकाय ग्रंथ में बृहत् रूप से श्रमण-श्रमणियों के मासकल्प, वस्त्र, रजोहरण, दीक्षा की योग्यता, कुछ प्रायश्चित, आहार आदि विधि-विधानों का वर्णन है। इसमें 473 गाथायें हैं। व्यवहार सूत्र : इसमें 10 उद्देशक एवं लगभग 300 सूत्र हैं। यह भी गद्यात्मक शैली में निबद्ध हैं। साधु-साध्वी जी के पारस्परिक व्यवहार की अनेक शिक्षाओं को उजागर करने वाला यह सूत्र साधु-साध्वी जी के लिए विशेष उपयोगी है। आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तिनी की योग्यता व महत्ता तथा उपकरण, व्यवहार, वैयावृत्य, आदि विविध विषयों का ज्ञान है। निशीथ सूत्र : निशीथ शब्द का अर्थ है अप्रकाश, गोपनीय। दोष विशुद्धि के प्रायश्चित्त विषयक बातें सबके समक्ष गोपनीय होने से इसका नाम निशीथ है एवं इसके अध्ययन के लिए अति-विशेष योग्यता चाहिए होती है। इसके 20 उद्देश्यों की लगभग 1500 गाथाओं में गुरुमासिक, लघुमासिक, गुरु चातुर्मासिक, लघु चातुर्मासिक - प्रायश्चित्त का
वर्णन है। 5) पंचकल्प सूत्र : 1133 गाथाओं में निबद्ध इस आगम में भी साधु-साध्वी जी के
जीवनोपयोगी कल्प (आचार) का सुन्दर वर्णन है। कहीं-कहीं इसके स्थान पर जीतकल्प सूत्र बताया है।
अनेकों विद्वानों के अनुसार, इस समय तक अनेकों आगमों की रचना गीतार्थों ने की थी। जिस प्रकार दशवैकालिक की रचना आचार्य शय्यंभव ने की थी, उसी प्रकार अन्य आगम ग्रंथ भी रचे गए थे। आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी ने उनकी विवेचना के लिए, अर्थों को और अधि क स्पष्ट करने के लिए 'नियुक्ति' साहित्य रचा। उन्होंने विविध नियुक्ति ग्रंथ रचे- आवश्यक नियुक्ति - दशवैकालिक नियुक्ति । - उत्तराध्ययन नियुक्ति आचारांग नियुक्ति - सूत्रकृतांग नियुक्ति
- दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति . बृहद्कल्प नियुक्ति . व्यवहार नियुक्ति
- सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति - ऋषिभाषित नियुक्ति - पिंड-नियुक्ति
- ओघनियुक्ति पर्युषणाकल्प नियुक्ति - संसक्त नियुक्ति आदि महावीर पाट परम्परा
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