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साहित्य रचना :
आचार्य भद्रबाहु के शासनकाल में जब 12 वर्षीय भयंकर दुष्काल से भारत के विविध प्रान्त ग्रस्त थे, तब कुछ वर्ष आचार्य श्री जी ससंघ बंगाल के सन्निकट समुद्री किनारों पर या तटवर्ती बस्तियों में विचरण करते थे। इसी प्रदेश में उन्होंने संभवतः छेद सूत्रों की रचना की एवं तत्पश्चात् वे अकेले महाप्राणध्यान साधना हेतु नेपाल चले गए थे।
आगमों में छेद सूत्रों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। छेद नामक एक प्रायश्चित्त के आधार पर संभवतः इन सभी को छेद सूत्र कहा जाता है। आचार शुद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के प्रायश्चित सम्बन्धी विधि-विधानों का उल्लेख इसमें है। छेद सूत्रों की संख्या 6 है, जिसमें से 4-5 आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी द्वारा रचित माने जाते हैं1) दशाश्रुतस्कन्ध (आचारदशा) : इसमें 10 दशाएं (अध्ययन) हैं। इसमें मूलतः मुनि
भगवन्त की आचार संहिता का वर्णन हैप्रथम अध्ययन : 20 असमाधि स्थान द्वितीय अध्ययन: 21 शबल दोष तृतीय अध्ययन : 33 आशातना
चतुर्थ अध्ययन : 8 गणी संपदा पंचम अध्ययन : 10 चित्त समाधि षष्ठम अध्ययन : 11 उपासक प्रतिमा सप्तम अध्ययन : 12 भिक्षु प्रतिमा अष्टम अध्ययन : पर्युषणा कल्प नवम अध्ययन : 30 मोहनीय स्थान दशम अध्ययन : विभिन्न निदान कर्म इत्यादि का सविस्तृत वर्णन है। कल्पसूत्र : वर्तमान समय में शास्त्रों में कल्पसूत्र का उल्लेखनीय महत्त्व है। इस ग्रंथ का भी श्रेय आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी को जाता है। उन्होंने दीर्घदर्शिता के आधार पर नवमें प्रत्याख्यान-प्रवाद पूर्व में से यह उद्धृत किया एवं दशाश्रुत स्कंध आगम के आठवें अध्ययन-पज्जोषणा में सम्मिलित किया। कालक्रम से यह स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। मूल कल्पसूत्र 1215 गाथा होने से यह बारसा सूत्र के नाम से भी प्रचलित है एवं इसमें साधु-साध्वी जी के 10 कल्प, तीर्थंकर चरितावली एवं स्थविरावली का सविशेष उल्लेख है। जैन धर्म के प्रमुख पर्व-पर्युषण में प्रत्येक जगह कल्पसूत्र का वांचन किया जाता है।
महावीर पाट परम्परा
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