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________________ आप वहाँ (पाटलीपुत्र) पधार कर मुनियों को दृष्टिवाद की ज्ञान राशि से लाभान्वित करें। आचार्य भद्रबाहु निरपेक्ष स्वर में बोले - "श्रमणों! मेरा आयुष्काल कम रह गया है। इतने कम समय में दृष्टिवाद सूत्र की वाचना देने में मैं असमर्थ हूँ। मैं समग्र भाव से अब केवल आत्म साधना को ही समर्पित हूँ।" भद्रबाहु स्वामी जी के इस निराशाजनक उत्तर से श्रमण दुःखी हो गए। किंतु श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी जी की सत्यनिष्ठा पर उन्हें कोई संदेह नहीं था। युक्तिपूर्वक उन्होंने भद्रबाहु स्वामी से पुनः प्रश्न किया- “संघ की प्रार्थना (आज्ञा) अस्वीकृत करने का क्या दंड (प्रायश्चित) आता है?" आचार्य भद्रबाहु के द्वारा यथार्थ निरूपण होगा, यह सबको विश्वास था और यही हुआ आचार्यश्री ने फरमाया - वह व्यक्ति संघ से बहिष्कृत करने योग्य है। श्रुतकेवली आचार्य प्रवर इस अकीर्तिकर प्रवृत्ति से संभल गए। उन्होंने सभी को सन्तोष देते हुए कहा कि मैं महाप्राणध्यान साधना में प्रवृत्त हूँ। संघ से निवेदन है कि मेधावी साधुओं को यहाँ भेजा जाए। मैं उन्हें प्रतिदिन 7 वाचनाएं देने का प्रयत्न करूँगा। इस प्रकार सुनकर श्रमण प्रसन्न हुए। संघ की आज्ञा पाकर अत्यंत मेहनती एवं मेधावी 500 साधु भगवन्त नेपाल में आचार्य भद्रबाहु के पास पहुँचे। आचार्यश्री जी प्रतिदिन 7 वाचनाएं प्रदान करते थे। एक वाचना भिक्षाचर्या (गोचरी) से आते समय, 3 वाचनाएं विकाल बेला में और 3 वाचनाएं प्रतिक्रमण के बाद रात्रिकाल में। किंतु दृष्टिवाद का अध्ययन बहुत कठिन था। वाचना प्रदान का क्रम भी बहुत मन्दगति से चल रहा था। मेधावी मुनियों का धैर्य डोल उठा। एक-एक करके 499 शिक्षाशील मुनि वाचना क्रम को छोड़कर चले गए। केवल 1 मुनि स्थूलिभद्र ही वहाँ बचे। वास्तव में वे उचित पात्र थे। सीखने का उनका धैर्य, परिश्रम एवं मेधा कुछ भिन्न ही थी। आठ वर्षों में उन्होंने 8 पूर्वो का अध्ययन कर लिया था। महाप्राणध्यान - साधना पूर्ण होने तक आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी मुनि स्थूलिभद्र को 2 वस्तु कम 10 पूर्वो का ज्ञान प्रदान किया। तत्पश्चात् वे दोनों विहार करके पाटलिपुत्र पहुँचे। वहाँ स्थूलिभद्र स्वामी जी ने उन्हें अपना सुयोग्य पट्टधर घोषित किया। __ आचार्य सम्भूतविजय जी ने अपनी शिष्य संपदा से एवं आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी ने अपनी श्रुत संपदा से जिनशासन की भूरि-भूरि प्रभावना की। महावीर पाट परम्परा 30
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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