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________________ एवं हिंसायुक्त बलियां, यज्ञ आदि रूकवाये। वे श्रुतकेवली एवं युगप्रधान आचार्य रहे। उनकी उग्र तपस्या का भी जनता में व्यापक प्रभाव पड़ा। चौदह पूर्वो की संपदा का सम्यक् ज्ञान उन्होंने अपने सुयोग्य शिष्यों को भी दिया। एक बार एक मुनि अग्निदत्त ने उनसे प्रश्न किया कि - " हे ज्ञानेश्वर ! भविष्य में जिनशासन का क्या हाल होगा? इसका उद्योत करने वाला कौन होगा?" तब श्रुतकेवली एवं अवधिज्ञानी यशोभद्रसूरि जी ने भविष्य में होने वाले सम्राट सम्प्रति आदि का कथन किया। उन्होंने आगे के सैकड़ों वर्षों बाद होने वाली घटनाओं का भी निरूपण किया, जो 'वंगचूलिया' ग्रंथ में लिपिबद्ध हुई । ग्रंथ लेखन के बाद भी घटनाएं सभी सच प्रमाणित हुई। उन्होंने जिनशासन की महती प्रभावना की । संघ व्यवस्था : यशोभद्रसूरि जी के चालीस से भी अधिक महाप्रभावक शिष्यरत्न थे । भगवान् महावीर से लेकर यशोभद्र सूरि जी तक एक पट्टधर परम्परा चली, किंतु सुविशाल श्रमण- श्रमणी समुदाय एवं शिष्यों की योग्यता को देखते हुए यशोभद्र सूरि जी ने सम्भूतविजय जी एवं भद्रबाहु स्वामी जी को आचार्य एवं पट्टधर पद पर नियुक्त किया। कालधर्म : आचार्य यशोभद्र सूरि जी की सुंदर उपदेश - शैली, असाधारण विद्वत्ता, उत्तम चरित्र एवं सौम्य स्वभावी मुद्रा उनके स्वाभाविक गुण थे। चौसठ वर्ष के संयम पर्याय में 50 वर्षों तक उन्होंने युगप्रधान व आचार्य पद को सुशोभित किया। जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए 86 वर्ष की कुल आयुष्य पूर्ण कर आचार्य यशोभद्र सूरीश्वर जी वी. नि. 148 (वि.पू. 322 ) में देवलोक को प्राप्त हुए। महावीर पाट परम्परा 177 27
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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