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6)
7 ) वचनशुद्धि अध्ययन : इसकी 57 गाथाओं में भाषा विवेक पर बल दिया गया है एवं मधुर, सत्य एवं शुद्ध वाणी का महत्त्व वर्णित है।
8)
महाचारकथा अध्ययन : इसमें धर्म-अर्थ- काम का आख्यान एवं उत्सर्ग अपवाद मार्ग रूपी धर्म का कथन है। इसमें 68 गाथाएं हैं।
9)
आचार प्रणिधान अध्ययन : इसकी 63 गाथाओं में कषाय त्याग, इन्द्रियविजय आदि आचारों का प्रतिपादन हैं।
विनयसमाधि अध्ययन : इसमें विनय, श्रुत, तप और आचार का वर्णन 62 गाथाओं में है।
10) सभिक्षु अध्ययन : इसकी 21 गाथाओं में आदर्श भिक्षु का स्वरूप वर्णित है। कालधर्म :
उन्होंने 28 वर्ष की आयु में वी. नि. 64 (वि. पू. 406) में दीक्षा ग्रहण की थी। शासन की महती प्रभावना करते वे वी. नि. 75 में आचार्य पद पर आरूढ़ हुए एवं 62 वर्ष की आयु में यशोभद्रसूरि जी को पट्टधर नियुक्त कर वी. नि. 98 ( ईस्वी पूर्व 429 ) में स्वर्गवासी बने ।
इन चार समाधियों
महावीर पाट परम्परा
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