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________________ प्रतिबोधित किया एवं जैन धर्म में स्थिर कर शासन प्रभावना के अनेक कार्यों का संपादन किया। अनेकों ब्राह्मणों को यज्ञ का आध्यात्मिक स्वरूप समझाकर उनको जैन धर्म के अनुकूल बनाया एवं अनेकों प्रकार से जिनशासन की शोभा में अभिवृद्धि की । साहित्य रचना : दशवैकालिक मुनि जीवन की आचार संहिता विषयक उपयोगी ग्रंथ है। इसका चतुर्थ अध्ययन आत्मप्रवाद पूर्व में, पंचम अध्ययन कर्मप्रवाद पूर्व में से, सप्तम अध्ययन सत्यप्रवाद पूर्व में से एवं शेष अध्ययन प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व में से निहित है। ग्रंथ के मंगलाचरण स्वरूप प्रथम गाथा इस प्रकार है अर्थात् - अहिंसा, संयम और तप से सुशोभित धर्म उत्कृष्ट मंगलकारी है और जो इस धर्म की आराधना करते हैं, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। आज भी दीक्षा पश्चात् अनिवार्य रूप से साधु-साध्वी जी प्रथमतः इसका ही स्वध्याय करते हैं। इसमें 10 अध्ययन इस प्रकार से हैं: 1) द्रुमपुष्पिका अध्ययन : इसमें धर्म का स्वरूप, धर्म का महत्त्व एवं श्रमण जीवन का परिचय हैं। गाथाएं 5 हैं। 'धम्मो मंगल मुक्किटं, अहिंसा संजमो तवो । देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो' 2) श्रमणपूर्विक अध्ययन : इसकी 11 गाथाओं में पौद्गोलिक वस्तुओं पर मोहत्याग एवं धर्म में अप्रमत्त (आलसरहित) होने को कहा है। 3) 4) 5) क्षुल्लकाचार अध्ययन : इसकी 15 गाथाओं में आचार और अनाचार, संयम का फल आदि लिखा है। धर्मप्रज्ञप्ति (षड्जीवनिकाय) : इस अध्ययन की 28 गाथाओं में जीवन के 6 काय एवं जयणापूर्वक संयम जीवन जीने का वर्णन है । पिण्डैषणा अध्ययन : इसकी 150 गाथाओं में गोचरी एवं भिक्षा संबंधी कल्प्य - अकल्प्य बातों का विवेचन है। महावीर पाट परम्परा 24
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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