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________________ किया कि मुझे भी श्रमण दीक्षा प्रदान कीजिए, अब मैं आपसे पृथक (अलग) नहीं रहूंगा। आचार्य ने कहा कि यदि तू हम दोनों का पिता पुत्र होने का सम्बन्ध किसी से भी नहीं कहेगा, तो ही तुझे दीक्षा दूंगा। मनक ने स्वीकार किया। अब वह बालमुनि मनक बना। उसकी दीक्षा सम्पन्न हुई। श्रुतकेवली आचार्य शय्यंभव हस्तरेखा विद्या के जानकार थे। उन्हें आभास हो गया मनक मुनि का आयुष्य बहुत ही कम है। अतः कम आयु में ज्यादा श्रुतज्ञान का अध्ययन संभव नहीं है। उसके अल्पायुष्य में भी आत्मकल्याण का बोध प्राप्त कर सके, इस शुभ भाव से उन्होंने विभिन्न पूर्वो से सार लेकर दश अध्ययन वाला सूत्रग्रंथ तैयार कर सांयकाल के विकाल में पूर्ण किया। उसका नाम 'दशवैकालिक' रखा गया। आचार्य शय्यंभव सूरि जी स्वयं बालमुनि मनक को दशवैकालिक सूत्र की वाचना देते थे। दीक्षा में छोटा होने के कारण मनकमुनि सभी वडिल मुनियों की वैयावृत्य भी करते थे। इस प्रकार 6 मीहने तक बालमुनि का जीवन स्वाध्याय और सेवा में समर्पित रहा। यह सूत्र मनक मुनि ने 6 महीने में ही पढ़ लिया। उसके बाद ही मनक मुनि का कालधर्म हो गया। मनक मुनि के शरीर का अग्निसंस्कार करके श्रावक गुरु के पास आए। उस समय यशोभद्र जी प्रमुख अनेक शिष्य गुरु के पास बैठे हुए थे। शय्यंभव सूरि जी ने श्रावकों को उपदेश दिया किंतु आज उनकी आँखों में आँसू आ गए। सभी ने पूछा कि गुरुदेव! आपके अनेक शिष्य परलोक जाते हैं, पर आपकी आँखों में आँसू कभी नहीं देखे। आज ऐसा क्यों? तब शय्यंभव सूरि जी ने रहस्य उद्घाटित करते हुए कहा कि मनक मेरा सांसारिक पुत्र था। तब साधुओं ने पूछा कि गुरुदेव! आपने हमें यह पहले सूचित क्यों नहीं किया कि बालमुनि मनक आपके पुत्र हैं? इस प्रश्न पर आचार्य शय्यंभव सूरि जी ने फरमाया - यदि तुम्हें यह पता होता तो तुम उससे वैयावृत्य आदि नहीं करवाते, फिर उसे मुनि जीवन का यह अद्भुत लाभ कैसे मिलता? इतने कम संयम पर्याय में सेवा का ऐसा सुनहरा अवसर मुनि मनक को मिले, इसीलिए इस बात को मैंने कभी उद्घाटित नहीं किया। शय्यंभव सूरि जी गंभीरता देखकर संपूर्ण संघ आश्चर्यचकित हो उनके चरणों में नतमस्तक हो गया। ज्यों ही शय्यंभव सूरि जी दशवैकालिक सूत्र का संवरण पुनः पूर्वो में करने लगे, तब संघ ने इसे अल्पबुद्धि-अल्पायुष्यी साधकों के उद्देश्य से स्वतंत्र रूप में रखने का निवेदन किया। आचार्यश्री ने विचार कर संघ की प्रार्थना को स्वीकार किया। उस समय मगध में नंदवंश का राज्य था। आचार्य शय्यंभव ने अमात्य पद पर आसीन कल्पक नामक ब्राह्मण को महावीर पाट परम्परा 23
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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