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धर्म के सम्यक् तत्त्वों की प्ररूपणा कर न केवल सम्यक्त्व परिपक्व कर दिया बल्कि मुनि दीक्षा प्रदान कर योग्य पट्टधर नियुक्त किया। शय्यंभव जैसे अहंकारी, निर्ग्रन्थ प्रवचन के घोर प्रतिद्वन्दी विद्वान को भगवान् महावीर के संघ में दीक्षित करना प्रभव स्वामी जी की क्षमता, दूरदर्शिता एवं ज्ञानबल का प्रबल उदाहरण बना। __ भगवान् श्री पार्श्वनाथ जी के चतुर्थ पट्टधर श्री केशी श्रमण ने भगवान् महावीर स्वामी जी के पास उपसंपदा ग्रहण की थी। उनकी शिष्य परंपरा उपकेश गच्छ के नाम से विश्रुत हुई। उपकेशगच्छीय आचार्य रत्नप्रभ सूरि जी द्वारा इस काल में माघ सुदि 5, गुरुवार, वी.नि. सं. 70 के दिन ओसिया जी एवं कोरटा जी तीर्थ में भगवान महावीर स्वामी जी की प्रभावक प्रतिमा प्रतिष्ठित की। ओसवाल वंश की स्थापना भी इनके द्वारा हुई। कालधर्म :
श्रुतकेवली आचार्य प्रभव को महावीर संघ का उत्तराधिकार अवश्य मिला, परन्तु सर्वज्ञत्व . (केवलज्ञान) की संपदा उन्हें प्राप्त नहीं हो सकी क्योंकि जंबू स्वामी जी के कालधर्म पश्चात् केवलज्ञान-मोक्ष का विच्छेद हो गया। प्रभव स्वामी जी 30 वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहे। कुल 75 वर्ष के संयम पर्याय (64 वर्ष मुनि पर्याय व 11 वर्ष आचार्य पर्याय) का पालन करते हुए वी.नि. 75 (विक्रम पूर्व 395) में वे अनशनपूर्वक स्वर्गगामी हुए।
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महावीर पाट परम्परा
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