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________________ साथ चोरी करने जंबू के घर पहुँचा। अपनी विद्या के बल से उसने ताला खोलकर प्रायः प्रायः सभी व्यक्तियों को सुला दिया और उनके आभूषण, दहेज आदि इकट्ठे करने लगे। जंबू ने अपने उच्च प्रासाद से चोरों द्वारा संपत्ति का अपहरण होते हुए देखा और उन्हें सचेत किया। 99 करोड़ सुवर्णमुद्राओं को गठरियों में बाँधकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। हालांकि जंबू कुमार को धन-द्रव्य पर बिल्कुल भी आसक्ति नहीं थी। फिर भी उसने विचारा कि मुझे तो सुबह दीक्षा लेनी है, लेकिन आज ये चोर द्रव्य ले जाएंगे तो लोग कहेंगे कि धन चले जाने के कारण यह सिर मुंडा रहा है। इस तरह धर्म की निंदा होगी। यह उचित नहीं है। यह सोचकर वह भावपूर्वक नवकार गिनने लगा। नवकार मंत्र के प्रभाव से 500 चोरों के पैर स्तंभित हो गए। अपनी पूरी शक्ति का जोर लगा लेने के बाद भी वे 500 चोर इंचमात्र भी हिल सके। प्रभव ने अपनी अवस्वापिनी विद्या का प्रयोग जंबू पर किया किंतु वह निष्प्रभावी रही। प्रभव स्तब्ध और अवाक् रह गया क्योंकि आज तक उसकी विद्या कभी निष्प्रभावी नहीं गई। प्रभव ने जंबू को बोला – मुझे निश्चय हो गया है कि आप कोई महापुरुष हैं। मैं आपके साथ मैत्री सम्बन्ध करना चाहता हूँ। कृपा कर आप अपनी विद्याएं-स्तंभिनी और विमोचनी मुझे सिखा दीजिए, मैं अपनी विद्याएं-अवस्वापिनी और तालोद्घाटिनी आपको सिखा देता हूँ।" ___ जंबू ने उत्तर दिया - "मेरे पास कोई विद्या नहीं है। मैं बस पंच परमेष्ठी का ध्यान करता हूँ, इसी कारण कोई देव या विद्या मुझे वश नहीं कर सकती और वैसे भी कल सुबह ही मैं अपना तन-मन सभी संपदाओं का त्याग कर सुधर्म स्वामी जी के चरणों में अपना जीवन समर्पित करने वाला हूँ।" जंबू की बात सुनकर प्रभव अवाक् रह गया। सभी सांसारिक सुख सुविद्याएं भोग-विलास सरलता से प्राप्त होने पर इनका त्याग कोई कैसे कर सकता है? इसी मनोवैज्ञानिक चिंतन में प्रभव का चित्त अनुरक्त हो गया। एक हितैषी के रूप में जंबू को वह सहसा बोल पड़ा - "संतानहीन व्यक्ति नरक में जाता है। अतः पुत्र को प्राप्त कर भावी संतति का विस्तार का पितृऋण से मुक्त बनो। उसके बाद संयमी होना शोभास्पद है। लोग तो ऐसे सांसारिक सुखों के लिए तरसते हैं, और आप...?" प्रभव चोर की बातों को जंबू कुमार ने ध्यान से सुना और फिर वैराग्य रस से पोषित धर्मगंगा बहाई। संसार का भयानक स्वरूप, सुख-दुःख की क्षणभंगुरता, आत्मधर्म की महत्ता एवं शाश्वत आत्मसुख का स्वरूप, इत्यादि विषयों पर जंबू कुमार ने कुबेरदत्ता आदि दृष्टान्तों के माध्यम से चोराधिपति प्रभव के अध्यात्म नेत्रों को अनावरित कर दिया। रात्रिभर की ज्ञानगोष्ठी से प्रभव का हृदय संयम मार्ग पर बढ़ने को तत्पर हो गया। अपने अधिपति के इस महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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