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________________ अनेकों जगह आगमों में आचार्य सुधर्म स्वामी जी का यह वाक्य प्रसिद्ध है - 'जंबू ! सर्वज्ञ श्री वीतराग भगवान् महावीर से मैंने ऐसा सुना है।' जंबू स्वामी जी अपने गुरु धर्म स्वामी जी का पूर्ण विनय करते थे। जिस तरह महावीर स्वामी और गौतम स्वामी जी का प्रगाढ़ सम्बन्ध था, उसी प्रकार इन दोनों का भी था । 'जंबूसामीचरिउ' ग्रंथ में सुधर्म स्वामी एवं जंबू स्वामी जी के पूर्वभवों का वृतांत मिलता है। एक भव में दोनों का भाई-भाई का रिश्ता था । भवदत्त ( सुधर्म स्वामी जी की आत्मा ) ने भवदेव (जंबू स्वामी जी की आत्मा) को बोध देकर दीक्षा दी। वे दोनों देवलोक में गए। वहाँ से च्यवकर सागरदत्त और शिवकुमार नाम के राजकुमार हुए। सागरदत्त ( सुधर्म स्वामी जी की आत्मा) ने मुनिदीक्षा ग्रहण की तथा शिवकुमार (जंबू स्वामी जी की आत्मा) को बोध देकर श्रावकत्व में दृढ़ किया। वहाँ से कालोपरान्त वे देव बने एवं उसके बाद मनुष्य भव में क्रमशः सुधर्म स्वामी एवं जंबू स्वामी बने । वी. नि. 12 में सुधर्म स्वामी जी को केवल ज्ञान हुआ। तभी से संघ की सारणा-वारणा-चोयणा - पडिचोयणा का दायित्व जंबू स्वामी जी ने संभाला। वी.नि. 20 में सुधर्म स्वामी जी को निर्वाण (मोक्ष प्राप्ति) हुआ एवं जंबू स्वामी जी का आचार्य पदारोहण एवं केवलज्ञान हुआ। अनन्त ज्ञान - दर्शन - चारित्र से युक्त श्री जंबू स्वामी जी ने 44 वर्ष तक द्वितीय पट्टधर के रूप में धरा को आलोकित किया। चूंकि वे स्वयं केवलज्ञानी थे, प्रभव स्वामी जी ने संघ संचालन में उनके आज्ञानुसार व्यवस्था रखी। आचार्य जंबू के शासनकाल में कई राजसत्ताएं परिवर्तित हुई। किंतु जंबू स्वामी जी सभी के आराध्य - पूज्य गुरु थे । मगध में शिशुनाग वंश के सम्राट कोणिक और तत्पुत्र उदायी का राज्य हुआ । उदायी राजा तो जंबू स्वामी जी के सन्निकट अष्टमी, चौदस को पौषध की आराधना करता था। सम्राट उदायी का देहावसान भी पौषध में हुआ । अवन्ती में प्रद्योत वंश के सम्राट पालक और तत्पुत्र अवन्तिवर्धन का राज्य हुआ । अवन्तिवर्धन की भाभी (राष्ट्रवर्धन की पत्नी) धारिणी ने जंबूस्वामी जी के हाथों से दीक्षा ग्रहण की। बाद में अवन्तिवर्धन ने भी जैन दीक्षा ली। कौशाम्बी में पौरव राजवंश के सम्राट अजितसेन और उनके उत्तराधिकारी सम्राट मणिप्रभ ने राज्य किया। भगवान् महावीर, जंबू स्वामी जी एवं निर्ग्रन्थ जैन धर्म के प्रति उनकी पूर्ण आस्था थी । कलिंग महावीर पाट परम्परा 14
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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