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के समय शय्या पर बैठकर जंबू ने आठों पत्नियों से कहा कि यह सारा संसार तो असार है, अनित्य है। अतः मैं दीक्षा ही लूंगा। नवविवाहित कन्याओं ने कहा कि हे स्वामी! आप इस समय दीक्षा की बात न करें। अब तो संसार का जो सुख मिला है, उसी को अच्छी तरह से भोगकर दीक्षा लेना। समुद्रश्री आदि आठों पत्नियां जंबू को संसार और भोग की ओर खींचना चाह रही थीं जबकि जंबू उन्हें वैराग्य पथ का महत्त्व समझाना चाह रहा था। उनकी यह चर्चा प्रभव चोर भी सुनता रहा ।
समुद्रश्री आदि आठों पत्नियों ने क्रम से 1-1 कहानी संसार में आकर्षित करने हेतु कही किंतु जंबू ने भी प्रत्येक कथा के उत्तर में 1-1 कथा कही और अंत में वैराग्यपूर्ण वाणी से सभी को संयम रंग से रंग दिया। काम वासना के बाण जंबू को पराभूत करने में निष्फल रहे। धीरे-धीरे एक ही रात्रि में जंबू स्वामी जी ने प्रभव आदि 500 चोरों को, आठों पत्नियों को, माता-पिता को, सभी सास-ससुरों को प्रतिबोधित कर दिया।
सुबह होते ही राजगृह में यह समाचार विद्युत-वेग की तरह फैल गया। 99 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं को धर्मक्षेत्र में लगाकर सभी 528 व्यक्तियों की दीक्षा का वरघोड़ा निकला। एक दिन पूर्व जनता ने विवाह का वरघोड़ा देखा और अगले ही दिन वैराग्य का वरघोड़ा ! जयजयकार से संपूर्ण राजगृही गूंज उठी। वीर निर्वाण संवत् 1 में सुधर्म स्वामी जी के करकमलों से सभी की भागवती दीक्षा हुई। जंबूद्वीप अधिपति अनादृत देव, मगध अधिपति सम्राट कोणिक भी दीक्षा महोत्सव में सहर्ष सम्मिलित हुए।
शासन प्रभावना :
श्रमणधर्म में प्रविष्ट होने के पश्चात् जंबू स्वामी जी ने अपने गुरु सुधर्म स्वामी जी के चरणों में रहकर अहर्निश परिश्रम से श्रुताराधन किया। वे शीघ्र ही द्वादशांगी के ज्ञाता बने। जिस प्रकार गणधर गौतम अपनी अंतर की जिज्ञासाओं के समाधान हेतु पूर्ण विनय से महावीर स्वामी जी से पूछते थे, उसी प्रकार जंबू अणगार को कोई भी शंका या जिज्ञासा होती थी तो गुरु सुधर्म स्वामी जी के समक्ष विनीत भाव से उपस्थित होते थे।
उपलब्ध आगमों का जो स्वरूप आज है, वह स्पष्ट करता है कि भगवान् महावीर की अर्थपूर्ण वाणी सुनकर सुधर्म स्वामी जी ने शब्दरूप में गूंथा, और जिस रूप में जंबू स्वामी जी ने पृच्छा कर आगमज्ञान प्राप्त किया, उसी स्वरूप में वह विद्यमान है। अतः आगमों की अविच्छिन्न परम्परा में जंबूस्वामी जी का बहुत बड़ा योगदान है।
महावीर पाट परम्परा
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